उत्तराखंड चमोलीinteresting facts about uttarakhand summer capital gairsain

समर कैपिटल गैरसैंण की खास बातें जानिए, कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ती है ये खूबसूरत जगह

गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग बेहद पुरानी है, 4 मार्च को इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान हुआ। इसके साथ ही उत्तराखंड देश का पांचवा ऐसा राज्य बन गया है, जिसकी दो राजधानियां हैं...

summer capital Uttarakhand: interesting facts about uttarakhand summer capital gairsain
Image: interesting facts about uttarakhand summer capital gairsain (Source: Social Media)

चमोली: उत्तराखंड सरकार का हालिया बजट सत्र ऐतिहासिक रहा। गैरसैंण को उसका सम्मान वापिस मिल चुका है। चमोली का गैरसैंण अब उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। 4 मार्च को बजट पेश करने के बाद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को राजधानी बनाने का ऐलान किया। घोषणा होते ही जश्न शुरू हो गया। गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग करने वाले लोगों ने आतिशबाजी की, जश्न मनाया। ग्रीष्मकालीन राजधानी गर्मियों में शासन चलाने वाली जगह होती है। कहा जा रहा है कि इस ऐतिहासिक ऐलान से पहले कैबिनेट के कई सहयोगियों को भी इसकी जानकारी नहीं थी। गैरसैंण दो शब्दों से मिलकर बना है। गैर का मतलब है गहरा स्थान और सैंण शब्द का मतलब है मैदानी इलाका। इस तरह गैरसैंण का मतलब हुआ गहराई में स्थित मैदानी क्षेत्र। उत्तराखंड में स्थाई राजधानी को लेकर पिछले 20 साल से आंदोलन चल रहा है। अलग राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड को स्थाई राजधानी नहीं मिल सकी। कहने को देहरादून राज्य की राजधानी है, लेकिन वह भी अस्थाई राजधानी है। राज्य आंदोलन के वक्त से ही गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने की मांग चलती आ रही है। अब गैरसैंण उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। इस तरह उत्तराखंड देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया है जिसकी 2-2 राजधानियां हैं।

  • ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण

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    आंध्र प्रदेश में 3 राजधानियों का प्रस्ताव है। हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में 2-2 राजधानियां हैं। प्रदेश सरकार के इस फैसले से लोग खुश हैं, लेकिन फैसले पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस कह रही है कि इस मामले में विपक्ष से चर्चा नहीं की गई। चलिए अब आपको गैरसैंण क्षेत्र की खास बातें बताते हैं। चमोली जिले में स्थित इस क्षेत्र को नगर पंचायत का दर्जा मिला है। ब्रिटिश काल में 1839 में इस क्षेत्र को कुमाऊं से स्थानांतरित करते हुए नवस्थापित गढ़वाल जिले में शामिल कर लिया गया। 20 फरवरी 1960 को चमोली को नया जिला बनाया गया, जिसमें गैरसैंण को भी शामिल किया गया। अस्थाई राजधानी देहरादून से ये करीब 260 किलोमीटर दूर है। हरिद्वार से यहां की दूरी 240 किलोमीटर और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 450 किलोमीटर है। ये क्षेत्र गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलो का प्रतिनिधित्व करता है। यहां गढ़वाली और कुमाऊंनी बोली बोली जाती है।

  • नेहरू ने 1960 में गैरसैंण को राजधानी के लिए सही माना

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    2011 की जनगणना के मुताबिक गैरसैंण तहसील की आबादी 62,412 है। गैरसैंण तहसील में 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल 13,177 परिवार हैं और यहां का लिंगानुपात 1,170 है जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। साक्षरता दर के मामले में भी ये क्षेत्र काफी आगे है। यहां साक्षरता दर 78.66% है। साल 1960 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की सलाह पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गैरसैंण को राजधानी के लिए उपयुक्त माना था। साल 1990 में जब राज्य आंदोलन की मांग शुरू हुई तब भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग बनी रही। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व है। सातवीं शताब्दी में भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र में ब्रह्मपुर नामक राज्य होने का जिक्र किया था। गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी 13 बार अनशन पर बैठे थे। बेनताल (आदिबदरी) में उनका आखिरी अनशन 38 दिन तक चला था। इसी अनशन के दौरान अगस्त 2004 में उनकी जान चली गई थी। भौगोलिक तौर पर यह इलाका उत्तराखंड के बीच में पड़ता है। इसलिए इसे राज्य आंदोलन के दौरान राजधानी बनाने की मांग की जाती रही।