अल्मोड़ा: प्रवासियों के आने से गांव की चहल-पहल लौट आई है। खासकर की युवाओं के पहाड़ों पर लौटने से गांव में एक उम्मीद की किरण भी लौट कर आई है। पहाड़ों की तकदीर और उसकी तस्वीर अगर कोई बदल सकता है तो वो है पहाड़ का युवा। लॉकडाउन में गांव की रौनक वापस आने के साथ ही अल्मोड़ा के कुछ युवाओं ने गांव में 18 दिन के भीतर सड़क बना कर हिम्मत और लगन का उदाहरण समाज के आगे पेश किया है। बता दें कि खौड़ी गांव स्थित सणोली तक सात किलोमीटर लंबी सड़क है मगर वहां से गुरना गांव तक तकरीबन 1 किलोमीटर पैदल जाना होता है जिसका रास्ता बेहद संकरा था। हालात तो इतने खराब थे कि बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाने में भी बेहद कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। ग्रामीण लंबे समय से इस संकरी सड़क के कारण उत्पन्न हो रही समस्याओं से ग्रस्त थे। ऐसे में जब द्वारसौं गांव के युवा लॉकडाउन के कारण वापस आए तो उन्होंने गांववालों की परेशानी को करीब से महसूस किया। आगे पढ़िए
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड के सिर्फ 3 जिलों में 100 से ज्यादा कोरोना पॉजिटव मरीज..यहां जरा संभलकर रहें
सभी ने आपस में इस विषय पर बातचीत भी की। दिल्ली, नोएडा, बैंगलोर आदि से आए उनमें से कुछ युवकों ने उस रास्ते पर यात्रा की तो उनको काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद सभी ने एकजुट होकर यह निर्णय लिया कि वह लॉकडाउन में इस सड़क की समस्या का निवारण करेंगे। वह सणोली के चमूधार से गांव तक संकरे मार्ग को चौड़ा करने में जुट गए। हाथ मे फावड़ा उठाए, सम्मल व गैंती थाम कर 3 मई से गांव लौटे युवा ने मार्ग के चौड़ीकरण की मुहिम की शुरुआत की। उनका मानसिक बल बढ़ाया सेवानिवृत्त शिक्षक रमेश जोशी और 65 साल के पूरन चन्द्र जोशी ने। दिन-रात सड़कों पर मेहनत करते युवाओं ने मिलजुलकर आखिरकार सड़क के चौड़ीकरण का कार्य 18 दिन में खत्म किया। महज 18 दिनों के भीतर उन्होंने संकरे रास्ते को चौड़ा कर गांव के निवासियों को आवाजाही की दृष्टि से एक सुरक्षित सड़क वरदान के रूप में दे दी है। उनके इस कार्य के बाद आसपास के गांव में भी युवाओं के द्वारा की गई मेहनत की खूब प्रशंसा हो रही है। सच में, पहाड़ों की तकदीर तो केवल पहाड़ों का युवा ही बदल सकता है।