उत्तराखंड चमोलीShaheed satish chandra sati of chamoli

उत्तराखंड शहीद की शहादत का ऐसा अपमान? कौन सुनेगा बुजुर्ग पिता की गुहार?

लाचार पिता सिस्टम के आगे रो रहे हैं...लेकिन सिस्टम के के सिर पर नींद सवार है। आखिर कब पिता की बात सुनेगा ये सिस्टम?

Uttarakhand Shaheed Satish Sati: Shaheed satish chandra sati of chamoli
Image: Shaheed satish chandra sati of chamoli (Source: Social Media)

चमोली: उत्तराखंड की किस्मत न जाने किस कलम से लिखी गई है। शहीदों के खून से सिंची इस धरती में शहादत ही आंसू बहा रही है। लेकिन क्या मज़ाल कि सिस्टम के कान में जूं तक रेंगे। ये तस्वीर भी एक शहीद की है, जिसके लाचार पिता सिस्टम के आगे रो रहे हैं...लेकिन सिस्टम के के सिर पर नींद सवार है..किसी की शहादत पर सड़कों पर उतर जाते हैं, नारेबाज़ी करते हैं। घरों को चले जाते हैं और चैन की नींद सो जाते हैं...मन को बस ये दिलासा देते हैं कि चलो आज कुछ काम किया। फिर उसके बाद क्या? फिर कहां चली जाती है वो शहादत? फिर कहां चली जाती है उस परिवार के लिए दिल में उमड़ती फिक्र? चमोली जिले का सिमली गांव..ये गांव कारगिल शहीद सतीश के गांव के नाम से जाना जाता है। वो वीर सपूत देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गया। लेकिन माफ करना सतीश...इस सिस्टम के आंखों का पानी सूख गया है। सतीश के पिता 20 सालों के बाद भी बेटे को सम्मान दिलाने के लिये सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। देश के लिए शहीद होने वाले जवानों को लेकर शासन और प्रशासन की संजीदगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है। नारायणबगड़ ब्लॉक के सिमली गांव में 5 अप्रैल 1976 को महेशानंद सती के घर शहीद सतीश चंद्र सती का जन्म हुआ। देश रक्षा के जज्बे के चलते भारतीय सेना में भर्ती हुआ। जिसके बाद कारगिल युद्ध के दौरान 30 जून 1999 को सिर्फ 23 साल की उम्र में देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। सतीश की शहादत के बाद तत्कालीन सरकार ने शहीद के गांव को जोड़ने वाली नारायणबगड़-परखाल सड़क और प्राथमिक विद्यालय का नाम शहीद के नाम से रखने की घोषणा की थी। आगे पढ़िए

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शहीद के नाम का स्मारक बनाने की घोषणा की गई। लेकिन शासन और प्रशासन की लापरवाही का आलम ये है कि सड़क पर शहीद के नाम का बोर्ड तो लग गया लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब तक तक सड़क का नाम नहीं बदला जा सका है। रकारें बदलती गई और एक एक कर उस अमर सपूत के पिता की उम्मीदों से खिलवाड़ होता रहा। ये कैसा घोर कलयुग है, जहां एक बाप अपने शहीद बेटे का नाम याद रखवाने के लिए दर दर की ठोकर खा रहा है। शहीद के स्मारक निर्माण के लिये गांव के जखोली सिमार में शिलान्यास के बाद कोई निर्माण नहीं हो सका है। शासन और प्रशासन की इस लचर कार्रवाई के लिये सतीश के 82 वर्षीय पिता आज भी सरकारी घोषणाओं को जमीन पर उतारने के लिये दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। शहीद के पिता कहते हैं कि सतीश के शहीद होने के बाद सरकार की ओर से सड़क और विद्यालय का नाम सतीश के नाम पर रखने और स्मारक निर्माण की बात कही थी। लेकिन शासन और प्रशासन से पत्राचार के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। सिस्टम की नाकामी की ये कहानी नयी नहीं है। हर बार उत्तराखँड ऐसे धोखे का शिकार होता है। जरा सोचिए ये कैसी संवेदनहीनता है, जहां शहादत का भी मज़ाक उड़ाया जा रहा हो। एक बार फिर से हम इसमें किसी की गलतियां निकालना शुरू कर देंगे। कोई इधर आरोप लगाएगा, कोई उधर आरोप लगाएगा। और वक्त के साथ ये किस्सा भी कहीं गुम हो जाएगा। जरा दिल और दिमाग को धौंकनी दीजिए..हम ये किस्सा आपके बीच इसलिए लेकर आए हैं। ताकि सनद रहे