उत्तराखंड देहरादूनWoman dies due to lack of treatment in Dehradun

देहरादून को ये किसकी नजर लगी? जुड़वा बच्चों की मौत के बाद मां की भी मौत

ये घटना न केवल व्यवस्था की खामियों की ओर इशारा करती हैं बल्कि यह सोचने पर मजबूर भी करती हैं कि आखिर स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों का खामियाजा पहाड़ की महिलाएं कब तक उठाती रहेंगी...

Dehradun Doon Hospital: Woman dies due to lack of treatment in Dehradun
Image: Woman dies due to lack of treatment in Dehradun (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड में जननी सुरक्षा योजना का सरकारी अस्पताल किस कदर मखौल उड़ा रहे हैं, इसकी एक बानगी देहरादून में देखने को मिली। जहां जुड़वा बच्चों की मौत के बाद प्रसूता एक के बाद एक 4 अस्पतालों के धक्के खाती रही, लेकिन इलाज नहीं मिला। बाद में उसे दून महिला अस्पताल में एडमिट कराया गया, जहां इलाज के दौरान महिला की भी मौत हो गई। इस मामले में मजिस्ट्रियल जांच बैठा दी गई है। सीएमओ डॉ. बीसी रमोला ने इसे बड़ी लापरवाही मानते हुए कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। चलिए अब पूरा मामला जान लेते हैं। देहराखास निवासी एक 24 वर्षीय महिला को इलाज के लिए दून अस्पताल लाया गया था, जहां आईसीयू में इलाज के दौरान महिला की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि महिला ने 9 जून को घर पर ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था, जिनकी मौत हो गई थी। घर पर प्रसव के बाद प्रसूता की हालत भी बिगड़ती चली गई। पहले उसे महिला कोरोनेशन अस्पताल ले जाया गया, फिर गांधी अस्पताल और फिर वहां से रेफर होकर वो दून अस्पताल लाई गई।

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परिजन उसे एक निजी अस्पताल में भी ले गए थे, लेकिन चार अस्पतालों में धक्के खाने के बाद भी प्रसूता को समय पर इलाज नहीं मिला। बाद में उसे दून हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, लेकिन तब तक उसकी हालत बिगड़ गई थी। अस्पताल में इलाज के दौरान महिला की मौत हो गई। प्रसूता की मौत ने राजधानी में स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये घटना न केवल व्यवस्था की खामियों की ओर इशारा करती हैं बल्कि यह सोचने पर मजबूर भी करती हैं कि आखिर स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों का खामियाजा पहाड़ की महिलाएं कब तक उठाती रहेंगी। खैर इस मामले में जिलाधिकारी ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। चिकित्साधिकारी भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कह रहे हैं, लेकिन अगर ये सजगता पहले दिखाई गई होती तो शायद महिला को घर पर डिलीवरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती। उसके बच्चों की जान ना जाती। इलाज ना मिलने की वजह से प्रसूता की मौत नहीं होती। इन दिनों राजधानी के अस्पतालों का बुरा हाल है। प्रसूताएं इलाज के लिए भटक रही हैं। कोविड और नॉन कोविड नियमों के फेर में प्रसूता और उनके परिजन सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटने को मजबूर हैं, लेकिन इनकी परेशानी पर कोई ध्यान नहीं दे रहा।