उत्तराखंड अल्मोड़ाDan Singh Rautela Almora Herbal Tea

पहाड़ के दान सिंह रौतेला, लॉकडाउन में घर लौटे..कंडाली से बनाई हर्बल टी, अब शानदार कमाई

अल्मोड़ा के नौबाड़ा गांव के निवासी दान सिंह रौतेला ने गांव लौट कर कंडाली की हर्बल-टी बनाने की शुरुआत की और महज दो महीने में उनका व्यवसाय सफलता की ऊंचाई पर पहुंच चुका है।

Kandali Herbal Tea: Dan Singh Rautela Almora Herbal Tea
Image: Dan Singh Rautela Almora Herbal Tea (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: हर्बल-टी का क्रेज पूरी दुनिया में बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना काल के दौरान लोग वापस हर्बल प्रोडक्ट्स की तरफ लौट रहे हैं। लोगों को अब अपने स्वास्थ्य की फिक्र है, और इसी के साथ हर्बल-टी की सेल दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की कर रही है। कितनी ही आयुर्वेदिक कंपनियां ऐसी हैं जो अलग-अलग किस्म की जड़ी-बूटियों से हर्बल-टी तैयार करती हैं। उत्तराखंड में भी चाय के शौकीनों की कमी नहीं है। ऐसे में हर्बल-टी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार का एक शानदार जरिया बनकर सामने आया है। हर्बल-टी का उत्पादन कर स्वरोजगार की एक अनोखी मिसाल पेश की है उत्तराखंड के काबिल और होनहार बेटे ने। उन्होंने अपनी सूझबूझ से और हिम्मत से कोरोना काल के इस मुश्किल दौर में स्वरोजगार अपनाकर एक अनोखी मिसाल समाज के आगे पेश की है। हम बात कर रहे हैं दान सिंह रौतेला की जो अब पहाड़ी बिच्छू घास यानी कि कंडाली से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली हर्बल-चाय तैयार कर हजार रुपए प्रति किलो के दाम पर उसे बेच रहे हैं। महज दो महिनों में उनका रोजगार अब इस कदर बढ़ रहा है कि बड़ी-बड़ी कंपनियां भी उनके उत्पाद में दिलचस्पी दिखा रही हैं।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - अभी अभी: उत्तराखंड में कोरोना से 7 लोगों की मौत, अब बेहद सावधान रहें
कोरोना काल में दिल्ली मेट्रो में नौकरी छोड़कर उन्होंने वापस अपने गांव की ओर रुख किया। उन्होंने घर पर ही हर्बल टी बनाने और इसी से रोजगार प्राप्त करने का निर्णय लिया। उनकी हर्बल टी में मुख्यतः बिच्छू की घास यानी कि कंडाली पड़ती है जोकि पहाड़ों पर बेहद आम है हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काफी मददगार है। केवल राजधानी दिल्ली में ही वे अब तक वे 40 किलो की हर्बल चाय बेच चुके हैं। उन्होंने हर्बल चाय की कीमत 1000 रूपए प्रति किलो रखी है। दान सिंह रौतेला का व्यवसाय इस कदर नाम रोशन कर रहा है कि अब नामी-गिरामी कंपनी अमेजन ने भी उनको उनको डेढ़ सौ किलो चाय की डिमांड भेजी है। वे बताते हैं कि मार्च में वह अपने गांव वापस आए और अपने आसपास के लोगों से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के नुस्खे जाने। उन्होंने जाना कि पुराने दौर में कंडाली जिसको कुमाऊं में बिच्छू घास भी कहा जाता है, उसकी सब्जी और चाय का चलन खूब था। उसके बाद उन्होंने तय किया कि वह इसी नुस्खे से स्वरोजगार को अपनाएंगे। बस दान सिंह ने जून के पहले सप्ताह में कंडाली से ही हर्बल चाय बनाकर बाजार में बेचने के लिए उतार दी। उनकी हर्बल टी की पूरे बाजार में जबरदस्त डिमांड हो गई है। वहीं राजधानी दिल्ली में भी उनकी बनाई हर्बल टी की मांग लगातार बढ़ रही है। वहां उन्हें अपनी बनाई गई हर्बल टी के थोक के खरीदार मिल गए हैं। इसी के साथ एमेजॉन कंपनी ने भी उन्हें डेढ़ सौ किलो हर्बल चाय तैयार करने का आर्डर दिया है।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: 600 मीटर गहरी खाई में गिरी कार, रात भर तड़पते रहे दो युवक..एक की मौत
दान सिंह ने अपनी हर्बल चाय को और अधिक जायकेदार एवं स्वास्थ्य के लिए और अधिक लाभदायक बनाने के लिए उसमें कंडाली के अलावा तेजपत्ता, तुलसी, अमरूद की पत्तियां और लेमन ग्रास भी सम्मिलित की हैं। यह सभी इंग्रीडिएंट्स उनको अपने गांव के आसपास मिल जाते हैं और इससे चाय का जायका और उसकी गुणवत्ता भी काफी बढ़ जाती है। वे बताते हैं कि इस हर्बल चाय में उनकी लागत बिल्कुल ना के बराबर है क्योंकि चाय में डलने वाली कंडाली के साथ सभी जड़ी-बूटियां उनको जंगलों और पहाड़ों से मिल जाती हैं। उन को सुखाकर और वह हर्बल-टी बनाते हैं। महज दो महीने में ही उनके पास खूब ऑर्डर्स आ रहे हैं। फिलहाल वे इसकी ऑनलाइन बिक्री कर रहे हैं और अब वह सोच रहे हैं कि वह कंडाली हर्बल-टी को एक ब्रांड के रूप में भी बढ़ाएं और इसी के साथ स्थानीय ग्रामीणों को भी अपने स्वरोजगार की मुहिम में शामिल करें।