उत्तराखंड अल्मोड़ाPreeti Bhandari Almora Mushroom Girl

पहाड़ की प्रीति..छोटे से कमरे से शुरू की मशरूम की खेती, अब हो रही है शानदार कमाई

प्रीति अपने गांव मशरूम की खेती कर रही हैं साथ ही वे कई युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उनको स्वरोजगार की तरफ प्रेरित भी कर रही हैं।

Preeti Bhandari: Preeti Bhandari Almora Mushroom Girl
Image: Preeti Bhandari Almora Mushroom Girl (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: स्वरोजगार......कोरोना काल के दौरान इस शब्द से जुड़े कई अविस्मरणीय उदाहरण समाज के सामने आए हैं। रोजगार छिन जाने के बाद पिछले कुछ महीनों में शहरों से गांवों की ओर लौटे युवाओं द्वारा स्वरोजगार की कई अनोखी परिभाषाएं गढ़ी गई हैं। उनको यह आभास हो रहा है कि गांव में रहकर शहरों से कहीं अधिक कमाई की गुंजाइश है। आजकल के युवा स्वरोजगार से इसलिए जुड़ पा रहे हैं क्योंकि उनके आसपास कई ऐसे प्रेरणास्त्रोत जो कई सालों से पहाड़ों की किस्मत चमका रहे हैं और अपनी लगन एवं मेहनत से स्वरोजगार के क्षेत्र में अपना नाम बुलंद कर रहे हैं। पहाड़ में अब भी कई ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने गांव में ही स्वरोजगार करने की शुरुआत की और आज उनकी सफलता का साक्षी पूरा राज्य है। ऐसी ही अल्मोड़ा की महिला हैं प्रीति भंडारी जिन्होंने मशरूम की सफलतापूर्वक खेती करके आत्मनिर्भरता का एक नया मुकाम हासिल किया है।

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प्रीति भंडारी पिछले 5 साल से अपने गांव में मशरूम की खेती कर रही हैं और अल्मोड़ा की प्रीति भंडारी उन 21 महिलाओं में से एक हैं जिनको तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित भी किया गया है। प्रीति न केवल मशरूम की खेती कर रही हैं साथ ही वे कई युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उनको स्वरोजगार की तरफ प्रेरित भी कर रही हैं। प्रीति ने स्वरोजगार के पथ पर 5 साल पहले चलना शुरू किया। हालांकि उनके पास संसाधनों की बेहद कमी थी मगर आत्म विश्वास और हिम्मत में उन्होंने कभी भी कमी नहीं आने दी। प्रीति भंडारी ने अपने घर में ही एक छोटे से कमरे में मशरूम का उत्पादन किया। उन्होंने बताया कि 5 साल पहले उन्होंने एक छोटे से कमरे में मात्र 20 बैगों से मशरूम उगाने का कार्य शुरू किया। उस समय उनके पास ना किसी प्रकार का अनुभव था, ना ही उन्होंने मशरूम की खेती के लिए कहीं से प्रशिक्षण लिया था और ना ही उनको गाइड करने के लिए कोई अनुभवी था। उनके पास था तो केवल जज्बा और आत्मविश्वास जिसके बलबूते पर उन्होंने खूब मेहनत की और परिश्रम की और 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद आज प्रीति तीन स्थानों पर मशरूम लगाती हैं। बता दें कि प्रीति बटन और ढिंगरी दोनों ही किस्म के मशरूम सफलतापूर्वक उगा रही हैं। मार्केट में उनके मशरूम हाथों हाथ बिक जाते हैं।

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प्रीति ने यह भी बताया कि जिस सीजन में उनका मशरूम सबसे अधिक उत्पादित होता है, उस सीजन में वे उसका अचार भी बनाती हैं और उस अचार की आपूर्ति दिल्ली जैसे कई बड़े शहरों में करती हैं जहां पर उनको थोक के भाव में अचार और डीलर्स मिलते हैं। अपने इन 5 सालों के चुनौतियों से भरे सफर के बीच में प्रीति ने मशरूम उगाने के लिए कई प्रशिक्षण लिए उन्होंने मशरूम उगाने से जुड़ीं कई नई जानकारी इकट्ठा कीं, और आज उनकी मेहनत का यह परिणाम है कि अब वे अपने द्वारा अर्जित किए गए ज्ञान और सीख को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं और दूसरों को मशरूम की खेती उगाने के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं। वे युवाओं और महिलाओं को निजी रूप से भी प्रशिक्षण देती हैं और साथ ही स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाले कई सरकारी और सामूहिक प्रशिक्षण भी उनके द्वारा दिए जा रहे हैं। उनके जज्बे और उनकी मेहनत को देखते हुए सरकार ने उन्हें इस बार तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए भी चयनित किया है।