उत्तराखंड देहरादूनIndresh maikhuri blog on uttarakhand employment

उत्तराखंड: बेरोजगारी की दर नकारात्मक नहीं,रोजगार देने वाले नकारा हैं! इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

उत्तराखंड में रोजगार को लेकर नित नए दावे हैं,घोषणायें हैं और उनके धुर विपरीत स्थिति में खड़ी जमीनी हकीकत है। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार एवं एक्टिविस्ट इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

Uttarakhand Employment: Indresh maikhuri blog on uttarakhand employment
Image: Indresh maikhuri blog on uttarakhand employment (Source: Social Media)

देहरादून: मुख्यमंत्री जी के मुखारविंद से सुना कि प्रदेश में बेरोजगारी की दर माइनस में चली गयी है। यानि प्रदेश में खोजे से भी कोई बेरोजगार नहीं मिल रहा है। लेकिन बीता वर्ष रोजगार वर्ष के रूप में भी मनाया गया, उत्तराखंड में ! सवाल यह है कि बेरोजगारी दर माइनस में है तो रोजगार वर्ष किसके लिए ?
इधर प्रदेश में सरकारी दस्तावेजों के अनुसार ही छप्पन हजार पद रिक्त हैं और इन पदों को भरने की सारी कवायद विज्ञापनों में ही दिखती है। महीनों-दो महीनों में प्रदेश में “बंपर भर्तियाँ” होने का विज्ञापन नहीं बल्कि अखबारों में खबर दिखती है।लेकिन ये “बंपर भर्तियाँ” पता नहीं क्यूँ अखबार से बाहर ही नहीं आ पाती। भर्तियाँ तो बंपर नहीं होती,परंतु अगर बेरोजगार लोग बंपर भर्ती की खबर देने वाले अखबारों को इकट्ठा कर लें तो बंपर रद्दी जरूर जमा हो जाएगी !
बंपर भर्तियाँ तो दूर की बात है 2017 के बाद उत्तराखंड में कोई पी।सी।एस। की परीक्षा तक नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से तीन साल में फॉरेस्ट गार्ड की परीक्षा हुई और वह परीक्षा भी साफ-सुथरी न हो सकी। उस परीक्षा पर धांधली के गंभीर आरोप लगे। अलबत्ता बयान से बेरोजगारी को माइनस में पहुंचाने वाले मुख्यमंत्री जी की सरकार धांधली वाली परीक्षा को ही असली मानने पर अड़ी हुई है। धांधली ही असल है तो क्या कीजिएगा

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड बीजेपी अध्यक्ष कोरोना पॉजिटिव, बेटा भी संक्रमित..सील हुआ दफ्तर
इस परीक्षा में धांधली के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले युवाओं का जम कर दमन किया गया। धरना-प्रदर्शन करने के लिए उन्हें जेल भेजा गया और कई मुकदमें उन पर लाद दिये गए। अब इन मुकदमों की जांच के नाम पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं को आए दिन देहारादून बुला कर हैरान-परेशान किया जा रहा है। फॉरेस्ट गार्ड परीक्षा में हुई धांधली के खिलाफ लड़ने और जेल जाने वाले एक युवा का रोते हुआ लाइव वीडियो बीते दिनों फेसबुक में देखा। वह युवा मुकदमों की जांच के नाम पर बुलाये जाने से इस कदर टूट चुका था कि रो-रो कर गिड़गिड़ा रहा था कि वह अब कुछ नहीं बोलेगा,सिर्फ अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करेगा,बस उसके खिलाफ कायम किए गए मुकदमें खत्म कर दिये जाएँ।एक युवा ने तो आत्महत्या करने से पहले सोशल मीडिया स्टेटस अपडेट में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा की धांधली का आत्महत्या के कारक के तौर पर उल्लेख किया। पर वह युवा न फिल्मस्टार था,न उसकी आत्महत्या वोट दिलाने के काम आ सकती थी,इसलिए उसकी आत्महत्या की खबर सनसनी नहीं बनी।
संभवतः प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं को पूरा सरकारी तंत्र यह सबक सिखाना चाहता है कि या तो चुपचाप सब बर्दाश्त करो या फिर अपना इंतजाम करो ! सरकारी इंतजाम तो घपले-घोटाले से मुक्त होगा नहीं !

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: मेयर सुनील उनियाल गामा की बेटी को मिली नौकरी..मचा बवाल
10 जून को उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव ने पत्र जारी करके सभी विभागों को निर्देशित किया कि नई नियुक्तियां न की जाएँ और जरूरी पदों पर आउटसोर्सिंग के जरिये नियुक्ति की जाये।
इस पत्र का आशय आज सोशल मीडिया में तैर रहे एक पत्र से समझा जा सकता है। देहारादून के जिला युवा कल्याण एवं प्रांतीय रक्षक दल अधिकारी द्वारा भारतीय चिकित्सा परिषद, उत्तराखंड के रजिस्ट्रार को लिखे उक्त पत्र में दो सुरक्षा कर्मी और दो ऑफिस स्टाफ उपलब्ध करवाने की बात कही गयी है। चर्चा है कि उक्त पत्र में लेखाकार के तौर पर नियुक्त युवती, देहारादून के भाजपाई मेयर की पुत्री हैं।
अब इस घटनाक्रम को जोड़ कर देखिये। 10 जून को जारी पत्र में बाहरी एजेंसियों से नियुक्ति की बात कही गयी है। 17 जुलाई 2020 को जो बाहरी नियुक्ति हुई,उसमें सत्ताधारी दल के भीतरी लोगों के परिजन नियुक्त हुए। इस तरह बाहरी एजेंसियों की नियुक्ति में भीतरी,भीतर होंगे और बाहरियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।
(वैसे जिन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने सरकारी खर्चों में मितव्ययता का हवाला देकर नियुक्तियों पर रोक का आदेश निकाला था,सुनते हैं रिटायरमेंट के बाद वे लोकसभा में पुनर्नियुक्ति पा गए हैं !)
दो वर्ष पहले विधानसभा अध्यक्ष के बेटे भी उपनल के जरिये जे।ई। नियुक्त किए गए थे। बाद में शोर-शराबा होने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
सरकार के अपने लोगों के अलावा योग्यता के आधार पर नियुक्ति चाहने वालों के लिए पानी की टंकी है,जेल है,मुकदमा है ! लेकिन सरकार के अपने लोगों के लिए भी संविदा का रोजगार है,पी.आर.डी. की नौकरी है,इससे ज्यादा उनके लिए भी कुछ नहीं है !