देहरादून: देशभर में प्रख्यात " मुंबई एकेडमी ऑफ मूवी इमेज फील महोत्सव इंडिया " उर्फ मामी की लोकप्रियता के बारे में हम सब जानते हैं। हर साल देश के कोने-कोने से फिल्में मामी फिल्म महोत्सव के लिए नामांकित की जाती हैं। इस बार मामी फिल्म महोत्सव में उत्तराखंड का जलवा भी देखने को मिलेगा। जी हां, उत्तराखंड देवभूमि की एक काबिल बेटी ने राज्य का परचम मामी महोत्सव में ऊंचा कर दिया है। बता दें कि उत्तराखंड के पहाड़ों के दर्द को बयां करती फिल्म " एक था गांव " को मामी फिल्म महोत्सव में गोल्ड श्रेणी के लिए नॉमिनेट किया गया है जिसकी निर्माता पहाड़ की ही बेटी है। उत्तराखंड के बेहद संवेदनशील विषय के ऊपर बनी फिल्म ने देश के नामीगिरामी फिल्म महोत्सव में अपनी जगह दर्ज कराई है, राज्य के लिए बेहद गर्व की बात है।एक था गांव फिल्म उत्तराखंड के पलायन के ऊपर बनाई गई बेहद भावुक कर देने वाली फिल्म है। यह तो हम सब जानते ही होंगे कि उत्तराखंड में पलायन की कितनी बड़ी समस्या है। पलायन के दर्द को फिल्म के जरिए बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म का निर्देशन और निर्माण किया है उत्तराखंड की होनहार एवं काबिल बेटी सृष्टि लखेड़ा ने। इस फिल्म को क्रिटिक्स द्वारा काफी सराहना मिली है
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एक था गांव.... जैसा कि फिल्म के नाम से ही पता लग रहा है फिल्म उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या, पलायन को दर्शा रही है। वह गांव जो कभी लोगों से आबाद हुआ करता था, अब पूरी तरह से सूना पड़ गया है। फिल्म हिंदी और गढ़वाली बोली में बनाई गए है और इस फिल्म की अवधि कुल 1 घंटे की है। इस फिल्म का निर्माण किया है कीर्ति नगर ब्लॉक की सिमली गांव निवासी सृष्टि ने। सृष्टि लखेड़ा ने इस फिल्म का निर्माण पावती शिवापालन के साथ मिलकर किया है। बता दें कि सृष्टि का परिवार वर्तमान में ऋषिकेश में रहता है। मगर आज भी सृष्टि को पहाड़ों के सूने पड़े गांवों का दर्द महसूस होता है। उनकी जान आज भी पहाड़ों पर ही बसती है। पहाड़ों से लगाव और लगातार खाली हो रहे गांव ही वजह है कि उत्तराखंड की सृष्टि ने पहाड़ों के इतनी संवेदनशील विषय को फिल्म के रूप में बड़े पर्दे पर उतारा है। सृष्टि पिछले 10 सालों से फिल्मी दुनिया से जुड़ी हुई हैं और उन्होंने इस फिल्म के जरिए यह बताने की कोशिश की है कि पहाड़ में खाली होते गांव चिंता का विषय है।
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यह सृष्टि की काबिलियत एवं रचनात्मकता का नतीजा है कि उनके द्वारा बनाई गई फिल्म को सुप्रसिद्ध मामी महोत्सव में जगह मिली है और गोल्डन श्रेणी में नॉमिनेट किया गया है। सृष्टि ने बताया की उन्होंने पलायन की समस्या नजदीक से महसूस की है इसलिए उन्होंने इस समस्या को फिल्म के जरिए पूरी दुनिया के सामने रखने की कोशिश की। सृष्टि का कहना है कि कभी उनके गांव में भी बेहद चहल-पहल हुआ करती थी मगर धीरे-धीरे गांव के लोग शहरों की तरह बस गए और वर्तमान में उनके गांव में मात्र 6 से 7 परिवार ही बचे हैं। सृष्टि ने कहा की है गर्व की बात है कि उनके द्वारा निर्मित की गई फिल्म को मुंबई फिल्म महोत्सव में जगह मिल रही है। 1 घंटे की फिल्म में सृष्टि में पहाड़ों के दर्द को बखूबी बयां किया है। उनकी फिल्म का मुकाबला विभिन्न भाषाओं की चार फिल्मों के साथ है।