रुद्रप्रयाग: कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। अगर मन में कुछ कर गुजरने का हौसला हो तो मंजिल आपको मिल ही जाती है। रुद्रप्रयाग जिले की रहने वाली पिंकी देवी की कहानी भी ऐसी ही है। पति की मौत के बाद आर्थिक संकट का सामना करने वाली पिंकी ने स्वरोजगार के जरिए ना सिर्फ अपनी तकदीर बदली, बल्कि गांव की दूसरी महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ा। आज पिंकी आत्मनिर्भर भारत की सशक्त मिसाल बन कर उभरी हैं। उनके काम से प्रभावित होकर जिला प्रशासन भी उन्हें सम्मानित कर चुका है। पिंकी उन सभी के लिए एक मिसाल हैं, जो खुद को असहाय महसूस करते हैं। चलिए आपको पहाड़ की इस बेटी के बारे में बताते हैं। पिंकी मूलरूप से ऊखीमठ ब्लॉक के सारी गांव की रहने वाली हैं। साल 2010 में उनकी शादी त्रियुगीनारायण गांव में रहने वाले भुवनेश गैरोला से हुई थी। शादी के कुछ साल तक सब ठीक रहा, लेकिन थोड़े वक्त बाद ही जिंदगी ने पिंकी का इम्तेहान लेना शुरू कर दिया। साल 2017 में किडनी की बीमारी की वजह से उनके पति की मौत हो गई। बीमार पति को बचाने के लिए पिंकी ने अपनी एक किडनी भी दी थी, लेकिन फिर भी पति की जान बच नहीं सकी। पति की मौत के बाद बुजुर्ग सास-ससुर और ननद की जिम्मेदारी पिंकी के कंधों पर आ गई। आगे पढ़िए
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तब पिंकी ने खेती और पशुपालन के साथ स्वरोजगार से जुड़ने का रास्ता अपनाया। वो रिंगाल से गुलदस्ते, फूलदान और झूमर बनाने लगीं। आज यही उनकी आय का जरिया है। पिंकी से प्रेरणा लेकर आज अलग-अलग गांवों की 12 से ज्यादा महिलाएं स्वरोजगार के जरिए अपनी तकदीर बदल रही हैं। पिंकी बताती हैं कि हस्तशिल्प के जरिए वो हर महीने 8 हजार रुपये तक कमा लेती हैं। पिंकी और अन्य महिलाओं द्वारा तैयार हस्तशिल्प की पर्यटकों के बीच विशेष डिमांड है। रुद्रप्रयाग और त्रियुगीनारायण आने वाले पर्यटक यादगार के तौर पर रिंगाल से बने गुलदस्ते, टोकरी और दूसरे हस्तशिल्प उत्पाद अपने साथ ले जाते हैं। पिंकी जैसी बेटियां पहाड़ में महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनकर उभरी हैं। अगर आपके पास भी ऐसी ही कोई कहानी हो तो राज्य समीक्षा तक जरूर पहुंचाएं। हम इन्हें मंच प्रदान करेंगे, ताकि दूसरे लोग भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित होकर राज्य के विकास में अपना योगदान दे सकें।