टिहरी गढ़वाल: राज्य स्थापना दिवस के मौके पर आज देश के सबसे लंबे पुल के ऊपर वाहनों के संचालन को आखिरकार हरी झंडी मिल गई है। टिहरी के निवासियों के लिए आज का दिन किसी त्योहार से कम नहीं है। एक बेशकीमती सौगात टिहरी समेत समस्त प्रदेश के निवासियों के हिस्से में आई है। 15 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार देश के सबसे लंबे सस्पेंशन ब्रिज डोबरा-चांठी पुल का आज सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा उद्घाटन कर लिया गया। यह पुल शुरुआत से ही काफी वाद-विवादों के बीच घिरा रहा। जनता ने इस पुल को लेकर काफी संघर्ष किया। कई अड़चनें इस पुल के निर्माण के बीच में आईं, मगर आखिरकार 15 साल के लंबे संघर्ष के बाद दो लाख की आबादी का सपना अब पूरा हो चुका है। जिस पुल के ऊपर आवाजाही करने का वह सालों से सपना देख रहे थे, आज वह सपना हकीकत बन गया है। एकता में कितनी शक्ति है यह टिहरी की जनता ने साबित कर दिया है।
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यह पुल महज आवजाही का जरिया नहीं है, बल्कि यह एक सशक्त उदाहरण है कि जनता के पास आखिर कितनी शक्ति है। वो चाहे तो क्या कुछ नहीं हो सकता। जनता के कठिन संघर्षों से बना देश का सबसे लंबा पुल प्रतापनगर के निवासियों के लिए किसी लाइफलाइन से कम नहीं है। इस पुल के बनने से पहले प्रतापनगर के निवासियों को 50 से 60 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती थी। इस पुल के बाद अब वह दूरी चंद मिनटों की बन चुकी है। 2 लाख की आबादी को यह पुल राहत देगा। 2005 में टिहरी बांध की झील बनने के साथ ही प्रतापनगर के आवागमन के रास्ते बंद हो गए थे। उसके बाद से ही लोगों को 50 से 60 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता था। लंबे समय तक प्रतापनगर की जनता ने इस पुल के निर्माण के लिए अपनी आवाज बुलंद की। प्रभावितों ने देहरादून में कांग्रेस मुख्यालय के सामने धरना प्रदर्शन करना शुरू किया। जनता ने लगातार जन प्रतिनिधियों के ऊपर दबाव बनाया जिसके बाद उस समय के सीएम नारायण दत्त तिवारी ने पुल के निर्माण के ऊपर स्वीकृति दी।
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जनवरी 2006 में भागीरथी नदी के ऊपर इस मोटर पुल का निर्माण कार्य शुरू हुआ। शुरुआती दौर में इस पुल को 2 साल के अंदर अंदर ही बनकर तैयार हो जाना चाहिए था, मगर निर्माण के बीच में ही पुल के डिजाइन बदलकर लंबाई 725 मीटर कर दी गई और इसे पुल की लागत भी काफी अधिक बढ़ गई। इस अचानक बदलाव से पुल के निर्माण में काफी अधिक विलंब हुआ। मार्च 2012 में चौराहे झूला पुल टूटने के बाद सरकार ने इस के डिजाइन को क्रॉस चेकिंग के लिए आईआईटी खड़कपुर भेजा। वहां के इंजीनियर्स ने इस डिजाइन के अंदर कई कमियां बताते हुए इस को फेल कर दिया। इसके बाद सरकार ने इस पुल के निर्माण के ऊपर रोक लगा दी। फिर त्रिवेंद्र रावत की सरकार सत्ता में आई और इस पुल को अपनी प्राइयोरिटी में रखा और निर्माणकार्य शुरू कराया। आखिरकार टिहरी की जनता का इतने सालों को इंतजार समाप्त होता है और अब यह पुल आवाजाही के लिए खुल चुका है। इस पुल के निर्माण के लिए प्रताप नगर की जनता ने एक लंबा संघर्ष पूर्ण रास्ता तय किया है और आखिरकार जो सपना वे 15 सालों से देखते आ रहे हैं वह पूरा हो चुका है।