उत्तराखंड रुद्रप्रयागStory of Kedarnath Bhairavnath Temple

भुकुंट भैरव: केदारनाथ से पहले होती है इनकी पूजा..शीतकाल में करते हैं मंदिर की रखवाली

हर साल केदारनाथ के कपाट खोलने से पहले भैरव मंदिर में भैरव नाथ जी की रीति-रिवाज के साथ पूजा-पाठ किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव के दर्शन किए बगैर भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा है।

Kedarnath Temple: Story of Kedarnath Bhairavnath Temple
Image: Story of Kedarnath Bhairavnath Temple (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: हिंदू धर्म में कई मान्यताएं सदियों से चलती आ रही हैं। भगवान शिव की बात करें तो हिंदू धर्म में उनका एक बहुत ही अहम स्थान है और शिव भगवान के सिद्ध मंदिरों में दर्शन करने कई श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। शिव भगवान के दर्शन के साथ एक बहुत ही अहम मान्यता जुड़ी हुई है जिसका सदियों से पालन हो रहा है और आज भी लोग इसको मान रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही भगवान के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके दर्शन के बिना भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा और निरर्थक माना जाता है। देश में जहां जहां भगवान शिव के सिद्ध मंदिर है वहां-वहां पर काल भैरव जी का भी मंदिर स्थित है और यह माना जाता है कि काल भैरव मंदिर में दर्शन किए बगैर भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा और अमान्य है। भुकुंट बाबा को केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है। उन्‍हें यहां का क्षेत्रपाल माना जाता है। बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ भुकुंट बाबा की पूजा किए जाने का विधान है और उसके बाद विधिविधान से केदानाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।

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स्‍थानीय लोग बताते हैं कि वर्ष 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी। कपाट के कुंडे लगाने में दिक्‍कत हो रही थी औ‍र फिर उसके बाद पुरोहितों ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भुकुंट भैरव का आह्वान किया तो कुछ ही समय के बाद कुंडे सही बैठ गए और ताला लग गया। यहां शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भुकुंट भैरव के भरोसे ही रहती है। भारत में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध सिद्ध मंदिर हैं। काशी के बाबा विश्वनाथ हों या फिर उज्जैन के बाबा महाकाल, सभी स्थानों पर मशहूर काल भैरव का मंदिर है। शिवभक्त काल भैरव मंदिर के दर्शन किए बगैर शिव के दर्शन को अधूरा मानते हैं और जब भक्त भगवान शिव के दर्शन के बाद काल भैरव के मंदिर पर सिर झुकाते हैं तभी उनकी तीर्थ यात्रा पूरी मानी जाती है। उत्तराखंड में केदारनाथ भगवान शिव का जहां वास है वहां भी कुछ ऐसी ही परंपरा चली आ रही है। केदारनाथ में भी बाबा भैरव का भुकुंट भैरव नाथ मंदिर है और हर साल केदारनाथ के कपाट खोलने से पहले भैरव मंदिर में रीति-रिवाज के साथ पूजा-पाठ की जाती है। ऐसा माना जाता है भुकुंट भैरव मंदिर के दर्शन किए बगैर किसी की भी केदारनाथ यात्रा पूरी नहीं हो सकती और हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले पुजारी भुकुंट भैरवनाथ की पूजा करते हैं। आइए आपको बताते हैं कि भगवान भैरव के मंदिर में ऐसा क्या खास है और क्यों केदारनाथ की यात्रा इस मंदिर के बिना अधूरी मानी जाती है।

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भुकुंट बाबा को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है। उनको केदारनाथ का पहला रावल माना गया है उन्हें यहां का क्षेत्रपाल भी माना जाता है। परंपरा है कि बाबा केदारनाथ की पूजा से पहले और केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भी केदारनाथ में स्थित भुकुंट भैरव मंदिर में काल भैरव की पूजा की जाती है। पूजा पूरे रीति-रिवाज के साथ संपन्न होने के बाद केदारनाथ मंदिर के कपाट खोलने की तैयारी की जाती है। भैरव बाबा का यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से तकरीबन आधा किलोमीटर दूर स्थित है। भैरव को भगवान शिव का एक अटूट अंग माना गया है और पुजारियों के अनुसार हर साल यह परंपरा है कि मंदिर के कपाट खोले जाने से पहले मंगलवार और शनिवार के शुभ दिन ही भैरवनाथ की पूजा की जाती है। इस बात का जिक्र वेदों और पुराणों में भी मिलता है कि बाबा भैरव के दर्शन के बगैर भगवान शिव के दर्शन करना अधूरा है।