उत्तराखंड नैनीतालMinakshi khati aipan girl uttarakhand

शाबाश भुली..पहाड़ की समृद्ध परंपरा को साथ लेकर चली बेटी..अब रोजगार के साथ अच्छी आमदनी

चौखटों और दीवारों पर रंग उकेरने वाली कला ऐपण में निपुणता हासिल कर स्वरोजगार की अनोखी मिसाल पेश कर रही हैं उत्तराखंड की बेटी मीनाक्षी खाती। पढ़िए इनकी कहानी

Minakshi khati: Minakshi khati aipan girl uttarakhand
Image: Minakshi khati aipan girl uttarakhand (Source: Social Media)

नैनीताल: उत्तराखंड की पावन देवभूमि अपने अंदर सांस्कृतिक विरासत और कई अनमोल परंपराओं को समेटे हुए है। कई सारे लोककलाएं ऐसी हैं जो उत्तराखंड में सैकड़ों वर्ष से चलती आ रही हैं और अब भी कहीं ना कहीं वे जीवित हैं। खासकर कि गांव के अंदर लोककलाएं अभी भी देखने को मिलती हैं और लोग उतनी ही प्रेम और उत्साह के साथ इन लोककलाओं को अपनी जीवनशैली के अंदर सदैव समेट कर रखते हैं। इनमें से एक लोक कला है ऐपण जो कि कुमाऊं की एक बेहद प्रचलित लोक चित्रकला की शैली है और कुमाऊं की गौरवशाली परंपरा भी है। कुमाऊं की इस सांस्कृतिक लोककला को स्वरोजगार का जरिया बनाया है उत्तराखंड की 22 वर्ष की एक बेहद प्रतिभाशाली और महत्वकांक्षी बेटी मीनाक्षी खाती ने। नैनीताल जिले की रहने वाली मीनाक्षी खाती ऐपण कला में निपुणता हासिल कर स्वरोजगार की एक अनोखी मिसाल पेश कर रही हैं। वे कुमाऊं की लोक कला ऐपण को देश भर में प्रसिद्ध कर रही हैं और सोशल मीडिया पर मीनाक्षी खाती को कई लोगों से सराहना और सपोर्ट मिल रहा है। "ऐपण गर्ल" के नाम से प्रसिद्ध मीनाक्षी खाती लगातार इस प्राचीन लोक कला को जीवित करने के लिए भरपूर कोशिश कर रही हैं और इसी के साथ इसका प्रचार-प्रसार करने के लिए इसको रोजगार का जरिया भी बना रही हैं

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मीनाक्षी खाती बताती है कि "मिनाकृति ऐपण प्रोजेक्ट" लोकल महिलाओं और कलाकारों को सशक्त करने के लिए एक मुहिम है जिसके अंदर उनके साथ और भी कई लोग जुड़े हुए हैं। मीनाक्षी खाती को बचपन से ही उनकी मां और दादी ने ऐपण कला में निपुण बनाया है। वे बताती हैं कि समय के साथ लोग इस कला से दूर होते जा रहे हैं और अन्य जिम्मेदारियों और काम के कारण इस लोक कला का अस्तित्व धीरे-धीरे लोगों के बीच से मिटता हुआ नजर आ रहा है। कुमाऊं की संस्कृति ऐपण कला को लोगों के बीच जिंदा रखने के लिए और इसको देश भर में प्रख्यात करने के लिए मीनाक्षी ने इस कला को अपना रोजगार बना लिया है और आज वे इस राह में एक मिसाल बनकर समाज के सामने आई हैं। मीनाक्षी खाती अब ऐपण के इस कला को वॉल पेंटिंग्स, चाय के कप, कीरिंग्स, हैंडबैग्स और नेम प्लेट इत्यादि पर भी अपनी इस कलाकारी का जादू बिखेर रही हैं और लोगों का मन मोह रही हैं। उत्तराखंड की लोक कला को जीवित रखने के साथ ही वे आत्मनिर्भर भारत की ओर एक सफल कदम बढ़ाते हुए इसे रोजगार भी अर्जित कर रही हैं।

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सोशल मीडिया का शानदार तरीके से इस्तेमाल कर तमाम चीजों के ऊपर की गई ऐपण की कलाकारी को मीनाक्षी लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही हैं। उनकी मुहिम " मिनाकृति" के जरिए कई लोग ऐपण कला से रूबरू हो रहे हैं। उनको ऑनलाइन आर्डर मिलते हैं और अब वे गांव की महिलाओं को भी अपने साथ इस रोजगार में सम्मिलित कर रही हैं और उनको भी रोजगार मुहैया करा रही हैं। मीनाक्षी खाती बताती हैं कि वे खुद के साथ-साथ इन महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं और वे कोशिश कर रही हैं कि उनके इस काम को और अधिक विस्तार मिले ताकि अधिक लोगों को वे अपने साथ जोड़कर लोक कला को आगे बढ़ाएं और स्वरोजगार अपनाएं। नैनीताल की ग्रामीण औरतें ऐपण की कला में माहिर हैं। मीनाक्षी ने अपने साथ 15 महिलाओं एवं विद्यार्थियों को ऐपण कला के स्वरोजगार में शामिल कर रखा है और वे सब मिलकर तरह तरह की चीजों के ऊपर यह कलाकारी कर शानदार चीजें बना रहे हैं। "मिनाकृति ऐपण प्रोजेक्ट" के नाम से प्रख्यात उनकी इस मुहिम से अब तक कई लोग ऐपण कला से रूबरू हो चुके हैं और यह तेजी से लोगों के बीच में मशहूर हो रही है। मीनाक्षी खाती बताती है कि उनको शहरों से खासकर कि दिल्ली और अन्य आधुनिक शहरों से ज्यादा ऑर्डर्स मिलते हैं जहां पर उत्तराखंड के लोग पलायन कर बस चुके हैं। पहाड़ की लोककला को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करने वाली मीनाक्षी खाती ने स्वरोजगार की एक अनोखी मिसाल पेश की है और यह सराहनीय कार्य कर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि अगर सच में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो आप सफलता प्राप्त कर ही लेते हैं।