उत्तराखंड चमोलीIndresh Maikhuri blog on double engine government

डबल इंजन की डबल महिमा, सब कुछ डबल होना मांगता है...पढ़िए इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

कर्णप्रयाग नगर में शराब की दो दुकानें खोल जाने की चर्चा है। डबल इंजन की सरकार है तो सब कुछ डबल होना मांगता है..पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

Double Engine Sarkar: Indresh Maikhuri blog on double engine government
Image: Indresh Maikhuri blog on double engine government (Source: Social Media)

चमोली: सिंगल कुछ नहीं रहेगा ! घाट वाले डेढ़ लेन सड़क मांग रहे हैं तो उस पर कान देने वाला कोई नहीं है ! इसमें डबल नहीं है ना, इसलिए वहां जनता का कष्ट डबल कर देना है ! अस्पताल में डाक्टरों की खाली वेकेंसी-डबल,मरीजों को रेफर करने की रफ्तार-डबल ! एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल जाते हुए दम तोड़ने वालों की संख्या-डबल ! बिना स्कूल के खाली शिक्षक-डबल ! बिना बच्चों के बंद होते स्कूल-डबल ! वीरान होते गाँव-डबल !
मुख्यमंत्री जी ने कहा-पौड़ी विकास में उत्तराखंड में पहले नंबर पर है। पता चला कि पलायन में पौड़ी काफी तेजी पर है। सात साल में 186 गाँव खाली हो चुके हैं। बयान और आंकड़ों का आमने-सामने खड़ा डबल धमाल !
शराब के लिए डबल इंजन का समर्पण तो डबल है ही,एक बार नहीं कई-कई बार डबल है ! 2017 में जब सुप्रीम कोर्ट ने शराब की दुकानें खोलने पर कुछ बंदिशें लगा दी तो सरकार ने उन पाबंदियों से निकलने के लिए भी डबल तेजी से काम किया। पहले तो राज्य के राजमार्गों को जिला मार्ग घोषित किया। फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाने चली गयी कि हमारे यहाँ बंदिश न लगाओ। सुप्रीम कोर्ट ने भी डबल इंजन के शराब के प्रति डबल दर्द को देखते हुए पहाड़ में सब बंदिशें हटा ली ! इस बीच शराब के खिलाफ प्रदेश भर में आंदोलन हुआ। उस दौरान जिनको शराब की दुकानें खोलने में बाधा से दिक्क्त थी और जो दुकान खुलवाने के लिए मरने-मारने पर उतारू थे,आजकल वे धर्मपरायण बन कर मंदिर के लिए चंदा कर रहे हैं। मंदिर वहीं बनाएंगे,ठेका यहीं खुलवाएंगे ! एक के बाद एक और खुलवाएंगे !

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शराब के लिए तो सरकार निरंतर डबल इंतजाम करने के लिए उद्यत है। कल ही मंत्रिमंडल ने फैसला किया कि शराब की दुकान भी अब दो साल के लिए मिलेगी। यानि टेंडर एक और वर्ष डबल !
पर अफसोस ये है कि शराब के कारोबार और कारोबारियों के प्रति इस डबल समर्पण के बावजूद भी शराब बिक्री का लक्ष्य पूरा नहीं हो रहा है। दैनिक अखबार हिंदुस्तान के गढ़वाल संस्करण में आज प्रकाशित खबर के अनुसार इस वर्ष शराब से राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य 3460 करोड़ रुपये का लक्ष्य था,लेकिन आगामी मार्च तक 2700 करोड़ रुपया ही आने का अनुमान है। इन सब बातों को लिखते ही वही पुराना तर्क पुनः सामने आएगा कि शराब की बिक्री तो तनख़्वाह देने के लिए बहुत जरूरी है। इस तर्क के घोड़े पर सवार महारथियों को बताना है कि शराब की बिक्री का जो लक्ष्य है-3460 करोड़ रुपया, यदि वो पूरा भी हो जाये तो वह वेतन,भत्ते, पेंशन देने के लिए पूरा नहीं होगा। उत्तराखंड सरकार के वर्ष 2020-21 का बजट के अनुसार वेतन,भत्ते,पेंशन के लिए राज्य को 22 हजार करोड़ रुपये चाहिए।
राज्य का काम चले न चले पर शराब वालों का काम तो चलता है। शराब वालों का कारोबार चलता है तो हर छुटभय्ये से लेकर बड़भय्ये तक की जेब भी झूमती है। इसलिए शराब की दुकान डबल और ठेके की अवधि भी डबल। यही डबल इंजन की डबल महिमा है !