चमोली: चमोली के रैणी गांव में आई आपदा ने हर शख्स को झकझोर दिया है। पर्यावरणविदों की मानें तो रैणी में आई आपदा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है। उत्तराखंड में पहाड़ियों में ब्लास्ट कर के निर्माण किया जा रहा है। जिसके खतरनाक परिणाम ग्लेशियर टूटने के रूप में सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने भी चमोली आपदा को लेकर कई आशंकाएं जताई हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने आशंका जताई की रैणी क्षेत्र में स्नो एवलांच के साथ ही ग्लेशियर टूटने की वजह से तबाही हुई है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि आपदा की असली वजह क्या है? इस संबंध में विस्तृत वैज्ञानिक जांच के बाद ही पता चलेगा।
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संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसके राय का कहना है कि नीति घाटी में जिस जगह आपदा आई, वहां पिछले दिनों भारी बारीश और बर्फबारी हुई थी। जिस वजह से ऊपरी इलाकों में भारी बर्फ जमा हो गई। जैसे ही तापमान कम हुआ तो ग्लेशियर सख्त हो गए। आशंका है कि जिस क्षेत्र में आपदा आई, वहां टो इरोजन होने की वजह से ऊपरी सतह तेजी से बर्फ और मलबे के साथ नीचे खिसक गई होगी। आपदा की असली वजह जानने के लिए वैज्ञानिकों की टीम को विस्तृत अध्ययन करना होगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड में ज्यादातर ग्लेशियर अल्पाइन ग्लेशियर हैं। अल्पाइन ग्लेशियर स्नो एवलांच व टूटने के लिहाज से बेहद खतरनाक हैं।
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बारिश और बर्फबारी के चलते अल्पाइन ग्लेशियर पर कई लाख टन बर्फ का भार बढ़ जाता है. जिसकी वजह से ग्लेशियर के खिसकने व टूटने का बड़ा खतरा रहता है। चमोली में आई आपदा के पीछे भी यही आशंका जताई जा रही है। बात करें उत्तराखंड के ग्लेशियर की तो उत्तरकाशी में यमुनोत्री, गंगोत्री, डोकरियानी, बंदरपूंछ ग्लेशियर है। जबकि चमोली में द्रोणगिरी, हिपरावमक, बद्रीनाथ, सतोपंथ और भागीरथी ग्लेशियर स्थित हैं। रुद्रप्रयाग में केदारनाथ धाम के पीछे चौराबाड़ी ग्लेशियर, खतलिंग व केदार ग्लेशियर स्थित है। कुमाऊं के पिथौरागढ़ में मिलम ग्लेशियर, काली, नरमिक, हीरामणी, सोना, पिनौरा, रालम, पोंटिंग व मेओला जैसे ग्लेशियर प्रमुख हैं। जबकि बागेश्वर क्षेत्र में सुंदरढुंगा, सुखराम, पिंडारी, कपननी व मैकतोली ग्लेशियर स्थित है। गंगोत्री ग्लेशियर प्रदेश का सबसे बड़ा ग्लेशियर है।