देहरादून: बीते साल आई कोरोना महामारी के चलते हमारी जिंदगी थम गई। लाखों लोगों की नौकरी चली गई, काम-धंधे ठप पड़ गए, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, कि इसी कोरोना महामारी ने उत्तराखंड के मुखिया की कुर्सी बचा ली थी। जी हां, हम पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात कर रहे हैं। एक न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोरोना के चलते लॉकडाउन न लगा होता तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को पिछले साल ही कुर्सी छोड़नी पड़ती। एक मुख्यमंत्री के तौर पर त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल को बेहतरीन नहीं कहा जा सकता। उनके सीएम रहते नौकरशाही इस कदर हावी हो गई थी कि सत्ता और विपक्ष दोनों के विधायकों का सब्र जवाब देने लगा था। इन बातों की खबर बीजेपी आलाकमान को भी थी।
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बीजेपी आलाकमान के पास त्रिवेंद्र सिंह रावत के बतौर मुख्यमंत्री एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही लगातार शिकायतें आने लगी थीं। पहले तो इन शिकायतों को विरोधियों की कारस्तानी मानकर इग्नोर किया गया, लेकिन बाद में मंत्रियों, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की अनदेखी की शिकायतें बढ़ती गईं, तो त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी के बदलने की भूमिका बनने लगी। तीन मंत्री नवंबर 2019 से लेकर जनवरी 2020 तक बीजेपी के अलग-अलग बड़े नेताओं के दरबार में हाजिरी लगाकर अपना दुखड़ा सुना चुके थे। बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक दर्जनों शिकायतों के आने के बाद जब उसकी पड़ताल की गई तो तथ्य सच पाए गए। इसके बाद पिछले साल मार्च से अप्रैल के बीच उत्तराखंड में फेरबदल की योजना बनी, लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया।
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ऐसे में फेरबदल करना सही नहीं होता। इस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को जीवनदान मिला और उनकी कुर्सी बच गई। बाद में जब बिहार में चुनाव हुए, उस वक्त भी नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं थीं, लेकिन पूर्व सीएम रावत उस वक्त भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे। हालांकि जनवरी में पूर्व सीएम के खिलाफ चारों तरफ से मोर्चा खोल दिया गया। हाईकमान को आगाह किया कि अगर वक्त पर चेहरा नहीं बदला जाएगा तो आने वाले विधानसभा के चुनाव में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। संघ और बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बन सकी। जिस वजह से मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।