उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालLansdowne the severed-headed ghost The Story of wh Wardell

गढ़वाल: लैंसडौन की सड़कों पर घूमने वाला सिर कटा अंग्रेज़ भूत..जानिए उस अफसर की कहानी

ऐसे कई RETIRED सिपाही भी हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि उनको भी इस भूत ने झकझोरा है। कई लोग ये भी कहते हैं कि लैंसडौन में अपराध भी इसी वजह से नहीं होता।

Lansdowne the severed-headed ghost: Lansdowne the severed-headed ghost The Story of wh Wardell
Image: Lansdowne the severed-headed ghost The Story of wh Wardell (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: लैंसडौन..उत्तराखंड का एक खूबसूरत tourist spot…अलसाई घुमावदार सड़कें, चीड़ के पेड़ और अंग्रेजों के समय की बसाई गई छावनी। ये पहचान है ‘कालो का डांडा’ यानि लैंसडौन की। शहरों की आपाधापी से दूर यहां आकर महसूस होता है जैसे वक़्त थम सा गया हो, यहां इन सड़कों पर चलते हुए इस खूबसूरती को निहराना किसी सपने से कम नहीं। ये जगह जितनी मनोरम है, उतनी ही रहस्यमयी भी। यहां कुछ ऐसे वाक्ये, कुछ ऐसे किस्से हैं जिसे सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। चाहे वो सिर कटे अंग्रेज की रातों को यहां घूमने की कहानी हो या फिर लंबे हाथों वाली एक औरत की जो अपने उस पोते का इंजतार करती है जो यहां कि किसी खाई में समा गया था। आज हम आपको इस खूबसूरत लैंसडाउन के इसी रहस्यमयी पहलू से रूबरू करवाते हैं। यहां रह रहे कुछ बुजुर्ग लोगों के मुताबिक उन्होंने सिर्फ ये कहानियां सुनी ही नहीं बल्कि वो इसके गवाह भी बने हैं। तो चलिए आज हम आपको ऐसी ही एक प्रचलित कहानी के बारे में बताते हैं, जिसे यहां रहने वाले बुजुर्ग लगभग हर रोज़ दोहराते हैं..वो कहानी है- सिर कटे अंग्रेज की। आगे पढ़िए

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जनश्रुति है कि आधी रात को यहां के कैंटोनमेंट एरिया में एक सिर कटा अंग्रेज अपने घोड़े पर घूमता है। वो सिर्फ घूमता ही नहीं बल्कि यहां की चौकीदारी भी करता है। कहानियों और जनश्रुतियों के मुताबिक इस अंग्रेज का ये भूत यहां रात के समय ड्यूटी करने वाले सिपाहियों पर नजर रखता है, इतना ही नहीं अगर कोई सोता हुआ पाया गया तो उसकी तो खैर नहीं। ऐसे कई RETIRED सिपाही भी हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि उनको भी इस भूत ने झकझोरा है। कई लोग ये भी कहते हैं कि लैंसडौन में अपराध भी इसी वजह से नहीं होता। सवाल ये है कि आखिर वो अंग्रेज कौन है? कहते हैं कि वो भूतएक अंग्रेज ऑफिसर डब्लू. एच. वार्डेल का है। वार्डेल एक अंग्रेज अफ़सर था। वार्डेल 1893 में भारत आया था। इसके बाद उसने लैंसडोन में छावनी की कमान संभाली। इसके बाद 1901-02 के पास उसने अफ्रीका में नौकरी की और फिर भारत लौट आया। प्रथम युद्ध से पहले वह लैंसडाउन में ही था। इसके बाद उसे वहां बुलाया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान डब्लू. एच. वार्डेल फ़्रांस में जर्मनी से लड़ता हुआ मारा गया था। कहते हैं कि इस अंग्रेज अफ़सर की लाश कभी नहीं मिली। उसकी मौत के बाद तब के ब्रिटिश अख़बारों में लिखा गया है कि वह शेर की तरह लड़ा और मारा गया। कहते है कि मौत से पहले लैंसडाउन में पोस्टिंग होने और शव के क्रिया कर्म न होने के चलते 100 साल बाद आज भी डब्लू. एच. वार्डेल छावनी में घूमता है। ऐेसे ही कई और किस्से कहानियां हैं जो आपके और हमारे रोंगटे खड़े कर देंगी। हालांकि हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते हैं..लेकिन जो लोग लैंसडाउन जा चुके हैं वो समझेंगे कि वहां कि अकेली सुनसान सड़कें और शाम के समय पसरा सन्नाटा जहां सूकून देता है वहीं एक सिहरन भी पैदा कर देता है...तो ऐसे में अपने आप ही इन कहानियों पर विश्वास होने लगता है।