उत्तराखंड बागेश्वरCannabis cultivation in Bageshwar

उत्तराखंड: यहां भांग की खेती के लिए पहला लाइसेंस जारी..इससे कमा सकते हैं 3 गुना मुनाफा

गरुड़ तहसील के भोजगण निवासी प्रदीप पंत ने भांग की खेती के लिए आवेदन किया। तमाम जांच और कागजी प्रक्रिया के बाद बुधवार को जिला प्रशासन ने जिले का पहला लाइसेंस जारी किया है।

hemp cultivation: Cannabis cultivation in Bageshwar
Image: Cannabis cultivation in Bageshwar (Source: Social Media)

बागेश्वर: देशभर में किसान आंदोलन करने को मजबूर हैं। इस की वजह है लगातार घाटे का सौदा बनती खेती। लेकिन क्या आप जानते हैं कि औद्योगिक भांग की खेती कर किसान कम से कम तीन गुना मुनाफा कमा सकते हैं। उत्तराखंड की पहली इन्वेस्टर्स समिट में जब इंडिया इंडस्ट्रियल हेंप एसोसिएशन के अध्यक्ष रोहित शर्मा आए थे, तो उन्होंने ये बात कही थी। आम तौर पर भांग और औद्योगिक भांग के फर्क को समझना जरूरी है। इन दोनों में बड़ा अंतर है। ये दोनों एक ही परिवार के पौधे हैं लेकिन इनकी प्रजातियां अलग अलग हैं। नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली भांग में 30 फीसदी तक टेट्राहाइड्रोकेनोबिनॉल की मात्रा होती है। इसके उल्टा औद्योगिक भांग में ये मात्रा 0.3 फीसदी से भी कम होती है। टीएचसी रसायन ही नशे के लिए जिम्मेदार होता है। अब सवाल ये है कि आखिर भांग के रेश से क्या क्या बन सकता है और ये कहां कहां इस्तेमाल होता है। आगे पढ़िए

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भांग से फाइबर, कॉस्मेटिक एवं दवा, एमडीएफ प्लाईबोर्ड बनाने का काम होता है। निर्माण उद्योग में भांग की इस किस्म की भारी मांग है। कुपोषण को दूर करने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमेंं ओमेगा-3 और ओमेगा-6 समेत कई हाइ प्रोटीन पाए जाते हैं। भारत में औद्योगिक भांग के फाइबर की सालाना मांग 1,50,000 टन के करीब है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसकी आपूर्ति के लिए लिए हमें चीन से इसका आयात करना पड़ता । अब उत्तराखँड के बागेश्वर जिले में रोजगार का सृजन करने के लिए भांग की खेती का पहला लाइसेंस हिमालयन मॉक को मिल गया है। इससे स्थानीय बेरोजगारों के रोजगार सृजन का रास्ता खुल गया है। जिला प्रशासन ने हैम्प कल्टीकेशन पाइलट प्रोजेक्ट के तहत औद्योगिक एवं औद्यानिकी प्रयोजन के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप भांग की खेती को हरी झंडी दी है। आगे पढ़िए

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यहां गरुड़ तहसील के भोजगण निवासी प्रदीप पंत ने भांग की खेती के लिए आवेदन किया। तमाम जांच और कागजी प्रक्रिया के बाद बुधवार को जिला प्रशासन ने जिले का पहला लाइसेंस जारी किया है। भांग के बीज में टेट्रा हाइड्रो केनबिनोल यानी नशे का स्तर 0.3 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए। नशे की स्तर की प्रामाणिकता की जांच जिला प्रशासन करेगा। भांग से बनने वाले सीबीडी असयल का प्रयोग साबुन, शैंपू व दवाइयां बनाने में किया जाएगा। हैम्प से निकलने वाले सेलूलोज का प्रयोग कागज बनाने में होगा। हैम्प प्लास्टिक भी तैयार होगी, जो बायोडिग्रेबल होगी। वह समय के साथ मिट्टी में घुल जाएगी। हैम्प फाइबर से कपड़े बनाए जाएंगे। हैम्प प्रोटीन बेबी फूड बाडी बिल्डिंग में प्रयोग होगा तो हेम्प ब्रिक वातावरण को शुद्ध करेगा। यह कार्बन को खींचता है। जिससे वातावरण में कार्बन की मात्रा कम होगी।