उत्तराखंड देहरादूनYouth wants land law in uttarakhand

उत्तराखंड में सख्त से सख्त भू-कानून की मांग, आर या पार की लड़ाई के मूड में युवा

कानून की खामी के चलते हमारी कृषि भूमि पर बाहरी लोगों का कब्जा होने लगा है। दूसरे राज्यों के बिल्डर पहाड़ की कृषि भूमि को औने-पौने दाम में खरीद कर यहां रिजॉर्ट-होटल बना रहे हैं।

Uttarakhand land law: Youth wants land law in uttarakhand
Image: Youth wants land law in uttarakhand (Source: Social Media)

देहरादून: कहते हैं पहाड़ का पानी और जवानी, कभी पहाड़ के काम नहीं आते, और अब तो हमारी जमीनें भी हमारे काम नहीं आ रही हैं। दूसरे राज्यों के बिल्डर पहाड़ की कृषि भूमि को औने-पौने दाम में खरीद कर यहां रिजॉर्ट-होटल बना रहे हैं। कई जगह तो जमीनें ले-लेकर छोड़ दी गई हैं। इन जमीनों पर अब खेती भी नहीं हो रही, खेत बंजर हो रहे हैं। जो खेत-जंगल कभी अपने हुआ करते थे, वहां अब हम मेहमानों की तरह जाते हैं। समस्या बेहद गंभीर है, लेकिन अब पहाड़ के युवा इस मामले की गंभीरता को समझने लगे हैं। औने-पौने दाम पर बिक रही कृषि भूमि बचाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। चुनावी साल में यहां के युवाओं ने मजबूत भू-कानून की मांग को लेकर अभियान छेड़ दिया है। तमाम सोशल मीडिया मंच पर बीते दो दिन से भू-कानून की मांग ट्रेंड कर रही है। सियासी दल भी इसे लेकर सक्रिय हो गए हैं। इस तरह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश में भू-कानून का मुद्दा अचानक गरमा गया है। बीते दो दिन से ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भू-कानून की मांग को लेकर युवा धड़ाधड़ मैसेज कर रहे हैं।

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अभियान को धार देने के लिए लोक गीतों से लेकर, एनिमेशन और पोस्टर तक का सहारा लिया जा रहा है। पलायन एक चिंतन अभियान के संयोजक रतन सिंह असवाल कहते हैं कि कानून की खामी का फायदा उठाकर एक ही परिवार के कई लोगों ने अलग-अलग जगह जमीनें खरीद डाली हैं। जिस वजह से हमारी कृषि भूमि पर राज्य से बाहर के लोगों का कब्जा होने लगा है। रेडियो के लिए काम करने वाले नैनीताल के पंकज जीना ने भी भू-कानून के समर्थन में इंस्टाग्राम पर वीडियो जारी किया है। इसी तरह गढ़ कुमाऊं संगठन ने मंगलवार दोपहर तक भू-कानून के समर्थन में इंस्टाग्राम पर लगातार पोस्ट किए। गौचर के रहने वाले युवा सौरभ गुंसाई भी उन लोगों में से एक हैं जो उत्तराखंड में भू-कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बार ज्यादातर आम युवाओं ने यह अभियान छेड़ा है। अभियान के पीछे सियासी सोच नहीं है, लेकिन सियासी दलों को इस मुद्दे पर अपना स्टैंड साफ करना होगा।