उत्तराखंड टिहरी गढ़वालStory of Tehri Garhwal farmer Prabhat Ramola

गढ़वाल: गांव में बिना मिट्टी के सब्जियां उगा रहा है ये नौजवान, लाखों में कमाई..देखिए वीडियो

हाइड्रोपोनिक्स फॉर्मिंग के लिए न तो खेतों की जरूरत है और न ही मिट्टी की। इसके जरिए बेहद कम लागत और मेहनत में सीमित जगह में कई तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं। देखिए वीडियो

Tehri Garhwal News: Story of Tehri Garhwal farmer Prabhat Ramola
Image: Story of Tehri Garhwal farmer Prabhat Ramola (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: बदलते वक्त के साथ लोग खेती-किसानी से मुंह मोड़ने लगे हैं। खेती में मेहनत ज्यादा है, और मुनाफा कम। खेतों में पूरा-पूरा दिन खटने के बाद भी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल पाता। ऐसे में हाइड्रोपोनिक्स खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे प्रगतिशील किसान से मिलाएंगे, जो हाइड्रोपोनिक्स खेती यानी बिना मिट्टी के सब्जियों की पैदावार कर रहे हैं और इससे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इनका नाम है प्रभात रमोला। टिहरी के सौड़ झड़ीपानी गांव में रहने वाले युवा किसान प्रभात अपने पॉलीहाउस में बिना मिट्टी के सब्जियों की खेती कर रहे हैं। बिना मिट्टी पौधे उगाना अब तक लैब में ही सीमित था, लेकिन अब कम पानी व बिना मिट्टी से होने वाली इस खेती के शौकीन छोटी जगह में ही आसानी से सब्जियां उगा सकते हैं। इन दिनों प्रभात के पॉलीहाउस में टमाटर और खीरे की फसल हो रही है। प्रभात सब्जियों के पौधे जमीन में नहीं उगाते, बल्कि तकनीक का इस्तेमाल कर पानी के माध्यम से पौधों तक पोषक तत्व पहुंचाते हैं। साफ पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने पॉली हाउस में आरओ प्लांट लगाया है। जिसके जरिए वो बारिश के पानी को फिल्टर करते हैं। आगे देखिए वीडियो

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दो साल पहले तक प्रभात चंडीगढ़ में जॉब करते थे, लेकिन पहाड़ से लगाव के चलते वो गांव लौट आए। यहां उन्होंने खेती के ऑप्शन तलाशे और हाइड्रोपोनिक्स फॉर्मिंग को विकल्प के तौर पर अपनाया। प्रभात कहते हैं कि ये तकनीक हर लिहाज से फायदेमंद है। मिट्टी में अगर हम 5 किलो तक पैदावार करते हैं, तो वहीं इस तकनीक से 25 किलो तक का उत्पादन हो सकता है। हम किसी तरह के पेस्टिसाइड यूज नहीं करते। आमतौर पर एक किलो टमाटर की पैदावार में 200 लीटर पानी इस्तेमाल होता है, लेकिन इस तकनीक में महज 12 लीटर पानी में काम हो जाता है। यानी 90 फीसदी पानी की बचत होती है। अगर पहाड़ के युवा बहुत छोटे स्तर पर भी शुरुआत करें तो इस तकनीक से खेती करने से हर साल डेढ़ से दो लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। आज प्रभात 3 पॉली हाउस में इसी तकनीक का इस्तेमाल कर खेती कर रहे हैं। युवा किसान प्रभात के प्रोजेक्ट पर प्रोमोटिंग उत्तराखंड के श्रीकांत उनियाल ने खास वीडियो रिपोर्ट तैयार की है। चलिए आपको ये वीडियो दिखाते हैं।

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