उत्तराखंड नैनीतालStory of Rickshaw in Nainital

उत्तराखंड: नैनीताल में खत्म हो जाएगा सदियों पुराना इतिहास, 1846 में अंग्रेजों ने की थी शुरुआत

ब्रिटिश हुकूमत के वक्त साल 1846 में नैनीताल में हाथ रिक्शा की शुरुआत हुई। साल 1942 में शहर की सड़कों पर साइकिल रिक्शा नजर आने लगे, अब इनकी जगह ई-रिक्शा ने ले ली है।

nainital rickshaw: Story of Rickshaw in Nainital
Image: Story of Rickshaw in Nainital (Source: Social Media)

नैनीताल: सरोवर नगरी नैनीताल की सैर का असली मजा तब ही है, जब यहां की वादियों का साइकिल रिक्शा पर बैठकर दीदार किया जाए। हर साल लाखों पर्यटक नैनीताल आते हैं, साइकिल रिक्शा की सवारी करते हुए इतिहास के एक अध्याय को जीते हैं, लेकिन जल्द ही यहां के साइकिल रिक्शा इतिहास के पन्नों में दफन होने वाले हैं। गुरुवार को यहां ई-रिक्शा की शुरुआत हो गई। इसी के साथ साइकिल रिक्शा सेवा की समाप्ति की कहानी भी लिख दी गई। नैनीताल में साल 1846 में हाथ रिक्शा की शुरुआत हुई थी। इतने वर्षों में नैनीताल के रिक्शा ने अंग्रेजी हुकूमत से लेकर भारत की आजादी और न जाने कितने ऐतिहासिक दिन देखे। माल रोड पर लोग दो आने किराए पर साइकिल रिक्शा की सवारी करते थे, वर्तमान में रिक्शे की सवारी 20 रुपये पर पहुंचने के बाद बंद होने जा रही है। लगे हाथ आपको नैनीताल के इतिहास से भी रूबरू कराते हैं। नैनीताल की खोज 1839 में ब्रिटिश नागरिक पी बैरन ने की।

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1846 में यहां अंग्रेजों ने पर्यटन की शुरुआत की। उसी वक्त तल्लीताल से मल्लीताल तक ले जाने के लिए अंग्रेजी अफसरों ने रिक्शा शुरू किया। साल 1858 में मालरोड में झंपानी की शुरुआत हुई। इसे हाथ रिक्शा, राम रथ, विलियम एंड बरेली टाइप भी कहा जाता था। फिर आया साल 1942, ये वो साल था जब नैनीताल की सड़कों पर साइकिल रिक्शा नजर आने लगे। करीब 1970 के दशक तक भी नैनीताल में हाथ रिक्शा का चलन था। इसके बाद इसकी जगह धीरे-धीरे साइकिल रिक्शा ने ले ली। इतिहासकार अजय रावत के मुताबिक शुरुआत में रिक्शा का किराया दो आना प्रति सवारी तय किया गया। साल 1966 में ये चार आना हुआ और आज किराया 20 रुपये प्रति सवारी तक पहुंच गया है। इतिहास खुद को एक बार फिर दोहराने वाला है। जिस तरह 70 के दशक के बाद हाथ रिक्शा की जगह साइकिल रिक्शा ने ली थी, उसी तरह अब शहर में साइकिल रिक्शा की जगह ई-रिक्शा दौड़ते नजर आएंगे।