उधमसिंह नगर: कहने को तो उत्तराखंड है छोटा सा राज्य मगर यहां जैसी सैन्य परंपरा पूरे देश में कहीं नहीं हैं। भारतीय सेना और उत्तराखंड का नाता सालों से अटूट रहा है। राज्य के महत्वाकांक्षी युवाओं के लिए इंडियन आर्मी में जाना एक जुनून है। इसी जुनून के चलते उत्तराखंड के कई महत्वकांक्षी और मेहनती युवा भारतीय सेना में शामिल होकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं और बॉर्डर पर देश की रक्षा कर रहे हैं। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही लाल से मिलवाने जा रहे हैं जिनको बीते वर्ष लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन में अदम्य साहस दिखाने पर सेना मेडल से सम्मानित किया गया है। हम बात कर रहे हैं चंपावत के टनकपुर के मेजर गोविंद जोशी की। बीते वर्ष गलवान घाटी में चीन के खिलाफ ऑपरेशन में हमने अपने कई जवानों को खोया मगर हमारे भारतीय सेना के जवानों ने चीन को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। बीते वर्ष गलवान घाटी में चीन के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन में अदम्य साहस दिखाने के लिए मेजर गोविंद जोशी को सेना मेडल प्रदान किया गया है। वर्तमान में मेजर गोविंद जोशी लद्दाख में सेना के स्पेशल फोर्स में तैनात हैं।
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मूल रूप से टनकपुर के विष्णुपुर कॉलोनी के रहने वाले मेजर गोविंद जोशी को यह अदम्य साहस अपनी विरासत में मिला। सैन्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले मेजर गोविंद जोशी अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी की सेना अधिकारी हैं। बता दें कि उनके दादा सूबेदार दुर्गा दत्त जोशी और उनके पिता सूबेदार मेजर बृज मोहन जोशी के साथ ही उनके बड़े भाई कर्नल भवन जोशी भी भारतीय सेना का हिस्सा हैं और अपने भाई, पिता और अपने दादा को देखते हुए मेजर गोविंद जोशी ने भी भारतीय सेना में जाकर सेवाएं प्रदान करने का निर्णय लिया और देश सेवा को ही अपना भविष्य चुना। बता दें कि उनके दादा ने 1962 में भारतीय चाइना के युद्ध में देश की रक्षा करते हुए बलिदान दिया था। मेजर जोशी 21 मार्च 2009 को ओटीए चेन्नई से सेना अधिकारी बने थे और उनको पिछले वर्ष गलवान घाटी में अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए सेना मेडल मिला है। उनकी इन उपलब्धि से उनके पूरे परिवार में खुशी का माहौल है।