उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालMigration in Gadoli Talli village of Pauri Garhwal

गढ़वाल: इस गांव में बची हैं सिर्फ 3 बुजुर्ग महिलाएं..अब इसे भी कहा जाएगा ‘घोस्ट विलेज’!

तीनों बुजुर्ग महिलाएं गांव में एक-दूसरे के सहारे काट रही हैं दिन। गांव में छा चुका है सूनापन। पौड़ी के हिस्से पलायन के अलावा और कुछ नहीं आया है।

Pauri Garhwal Gadoli Talli Village: Migration in Gadoli Talli village of Pauri Garhwal
Image: Migration in Gadoli Talli village of Pauri Garhwal (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी विडंबना है। पलायन न होता तो उत्तराखंड की सूरत शायद कुछ और होती। गांव के गांव खाली हो रहे हैं। बचा है तो केवल सूनापन। उत्तराखंड के अधिकांश गांव पलायन का शिकार हो गए हैं, यह बात हम सब अच्छी तरह जानते हैं। यह बात सत्ताधारी लोग भी जानते हैं जिनके लिए पलायन वैसे तो सबसे गंभीर मुद्दा है मगर इसकी ओर कोई भी कदम उठाना नहीं चाहता। बात करें पौड़ी जिले की तो पौड़ी जिला पलायन के मामले में सबसे पहले नंबर पर आता है। आश्चर्य की बात तो यह है की पौड़ी जिले के कई दिग्गज केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार की बड़ी-बड़ी पोस्ट पर विराजमान हैं मगर इसके बावजूद भी कोई पौड़ी गढ़वाल से पलायन का खात्मा नहीं कर पाया है। हालात कुछ इस कदर पैदा हो रहे हैं कि कई गांव में उंगलियों पर गिने जाने लायक व्यक्ति ही बचे हुए हैं। पौड़ी गढ़वाल के हिस्से पलायन के अलावा के कुछ नहीं आया है। कई गांव में एक एवं दो परिवार बच गए हैं तो कई गांव या तो युवा विहीन हो चले हैं या फिर पुरुष विहीन हो गए हैं। आज हम आपको पौड़ी गढ़वाल के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर केवल तीन बुजुर्ग महिला रह गई हैं। गांव सूना पड़ गया है। आगे पढ़िए

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हम आपको विकास खंड एकेश्वर की ग्रामसभा सालकोट के गडोली टल्ली गांव की कहानी सुना रहे हैं। यहाँ पर अब केवल तीन बुजुर्ग महिला ही रहती हैं। विकास अबतक यहां नहीं पहुंच पाया है। ग्राम सभा से 25 किलोमीटर दूर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थित है। सड़क तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। गांव में बचीं ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि गांव की रौनक जा चुकी है। तीनों एक दूसरे के सहारे दिन काट रहे हैं। यहाँ पर जंगली जानवरों का आतंक छा रखा है। वे जान जोखिम में डालकर गांव में रह रही हैं। वे कहती हैं कि यदि हमारे गांव में सड़क होती तो शायद गांव को छोड़कर सभी लोग नहीं जाते। बुजुर्गों का कहना है कि गांव में सूनापन उनको भी नहीं भाता। मुश्किल से पहाड़ों पर जीवन व्यतीत होता है। उनका कहना है कि तबियत बिगड़ने पर ग्राम प्रधान ही इमरजेंसी में उनको दवाई इत्यादि देते हैं। आपको बता दें कि पौड़ी के सालकोट ग्राम सभा में 5 गांव आते हैं। पहला सालकोट जिसमे 7 परिवार रहते हैं और 25 जनसंख्या है। दूसरा गडोली मल्ली जिसमें 3 परिवार और 6 लोग रहते हैं। तीसरा गडोली टल्ली जहां महज 3 परिवार रहते हैं और केवल 3 बुजुर्ग महिलाएं गांव में रहती हैं। वीरों मल्ला में 6 परिवार एवं 15 लोग और वीरों तल्ला में 4 परिवार एवं 13 लोग रहते हैं। यानी कुल मिला कर पूरी ग्राम सभा में 23 परिवार है और टोटल जनसंख्या 62 है। विकास की बात सभी करते हैं...सत्ता की भूख इतनी है कि झूठे खोखले वादों की कोई कमी नहीं है... कमी है तो केवल प्रयास की जिससे उत्तराखंड के गांवों का सूनापन खत्म हो, खाली पड़े गांवों में खुशहाली वापस लौटे और उत्तराखंड के आसमान से पलायन के यह काले बादल छटें।