देहरादून: कोरोना और डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों के साथ उत्तराखंड में स्क्रब टाइफस का खतरा भी बढ़ रहा है। लोगों को इससे सावधान रहने की जरूरत है। स्क्रब टाइफस संक्रामक रोग है, जो कि मवेशियों के शरीर पर पाए जाने वाले माइट्स (घुन कीट) के कारण होता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने इसे लेकर चिंता जताई है। एम्स का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग इस जानलेवा संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं। दरअसल इन इलाकों में गोशालाएं घरों के नीचे या पास में बनाई जाती हैं। जिससे माइटस घरों में दाखिल हो जाते हैं। इन माइट्स के काटने से व्यक्ति स्क्रब टाइफस के संक्रमण की चपेट में आ जाता है। एम्स के सामुदायिक एवं फैमिली मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और आउटरीच सेल के नोडल अफसर डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक स्क्रब टाइफस माइट्स में मौजूद ओरएंटिया त्सुत्सुगामुशी बैक्टरिया के कारण होने वाला रोग है। यह माइट्स मुख्य तौर पर दुधारू और कृषि उपयोगी मवेशियों, जंगलों और गॉर्डन में पाया जाता है।
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ये डेंगू से भी खतरनाक है। क्योंकि डेंगू के मामले जून से अक्टूबर के बीच आते हैं, जबकि स्क्रब टाइफस का संक्रमण पूरे साल भर रहता है। अगर स्क्रब टाइफस के लक्षणों को नजर अंदाज कर दिया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है। सिरदर्द, तेज बुखार, ठंड लगना, शरीर में दर्द, रैशेज और माइट्स के काटने वाले स्थान में काला गोल निशान स्क्रब टाइफस के प्राथमिक लक्षण है। अगर दवा खाने के बाद भी 102 से 103 डिग्री फारेनहाइट बुखार, बेहोशी, दौरे पड़ना, निमोनिया, सांस फूलना जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत मेडिकल हेल्प लें। इससे बचाव के लिए पालतू जानवरों को साफ रखें। घर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। दुधारू और कृषि उपयोगी पशुओं की रहने की व्यवस्था घर से दूर करें। नंगे पैर न चलें। साथ ही जंगल, घास और गार्डन में जमीन पर न लेटें। बीमारी के लक्षण दिखने पर लापरवाही न बरतें, तुरंत अस्पताल जाएं।