उत्तराखंड देहरादूनkargil shaheed Himmat singh negi

उत्तराखंड शहीद हिम्मत नेगी की कहानी, ऑपरेशन विजय में अदम्य शौर्य के लिए मिला था सेना मेडल

सिपाही हिम्मत सिंह नेगी ने कारगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वो दुश्मनों से लड़ते रहे।

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Image: kargil shaheed Himmat singh negi (Source: Social Media)

देहरादून: उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। कहने को ये छोटा सा राज्य है, लेकिन यहां के लोगों की देशभक्ति का कोई जवाब नहीं। यहां के जांबाजों की वीर गाथाएं प्रदेश की सीमाओं तक न सिमटकर देश-दुनिया में फैली हुई हैं। सिपाही हिम्मत सिंह नेगी उत्तराखंड के ऐसे ही वीरों में से एक हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। सिपाही हिम्मत सिंह नेगी का जन्म 1 दिसंबर 1977 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ। उनके पिता बलवंत सिंह नेगी और माता चैता देवी विकासनगर घाट के बांसवाड़ा क्षेत्र के रहने वाले थे। हिम्मत सिंह नेगी की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई। शिक्षा हासिल करने के बाद वो सेना में भर्ती होने की तैयारी करने लगे और 13 जुलाई 1995 को भारतीय सेना का हिस्सा बन गए। वह भारतीय सेना की नागा रेजिमेंट का हिस्सा थे। कठिन ट्रेनिंग के बाद उन्हें 2 नागा बटालियन की डेल्टा कंपनी की 12 प्लाटून में नियुक्त किया गया।

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इस बीच 1999 में पाकिस्‍तान ने धोखे से कारगिल की कई चोटियों पर कब्‍जा कर लिया। तब भारतीय सेना ने उन चोटियों को कब्‍जा मुक्‍त कराने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया। 6 और 7 जुलाई 1999 की रात सेना ने प्वाइंट 4875 चोटी को कब्जे में लेने के लिए अभियान शुरू किया। यह एक ऐसी मुश्किल जगह थी जहां दोनों और खड़ी ढलान थी और उसी एकमात्र रास्ते पर दुश्‍मनों ने नाकाबंदी कर रखी थी। सिपाही हिम्मत सिंह भी इस अभियान का हिस्सा थे। दुश्मन की ओर से जारी भयानक गोलाबारी और विपरित परिस्थियों के बावजूद हिम्मत सिंह लगातार लड़ते रहे। युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने की वजह से सिपाही हिम्मत सिंह शहीद हो गए थे। अदम्य साहस और वीरता के लिए सिपाही हिम्मत सिंह नेगी को मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया। आज भी चमोली क्षेत्र में उनकी वीरगाथा बेहद गर्व के साथ सुनाई जाती है।