पिथौरागढ़: अपने घर-गांव से भला किसे लगाव नहीं होता। वो गांव जहां हमारा बचपन गुजरता है, जहां हम जिंदगी का ककहरा सीखते हैं, जब वही गांव आंखों के सामने धीरे-धीरे दम तोड़ रहा होता है, तो दिल दर्द से तड़प उठता है। पिथौरागढ़ के दर गांव के लोग भी इन दिनों इसी दर्द को हर दिन महसूस कर रहे हैं। चाइना बॉर्डर के करीब बसा दर गांव धीरे-धीरे दरक रहा है। चिंता सिर्फ गांव की ही नहीं, यहां रहने वाले लोगों की जिंदगी की भी है। क्योंकि अगर गांव के 35 परिवारों को जल्द ही सुरक्षित जगहों पर न पहुंचाया गया, तो इनके साथ अनहोनी हो सकती है। दर गांव साल 1974 से ही दरक रहा है। पिछले दिनों जिला प्रशासन के निर्देश पर एक टीम ने दारमा घाटी का सर्वेक्षण किया था। सर्वे टीम के लीडर प्रदीप कुमार कहते हैं कि सोबला-ढांकर को जोड़ने वाली रोड कटने से पहाड़ियां कमजोर हुई हैं। भूमिगत जलस्रोत गांव के नीचे से रिस रहे हैं। रिसते जलस्त्रोत पहाड़ियों को लगातार कमजोर कर रहे हैं। जिस वजह से गांव धीरे-धीरे दरक रहा है। हालात ये हैं कि गांव के 35 घर पूरी तरह टूट गए हैं। आगे पढ़िए
ये भी पढ़ें:
यह भी पढ़ें - गढ़वाल: आंगन में खेल रही 5 साल के बच्चे पर झपटा गुलदार, गांव में दहशत
बरसात थम गई है, लेकिन यहां लैंडस्लाइड लगातार जारी है। दर गांव में साल 1974 से भूस्खलन हो रहा है, लेकिन इस गांव को बचाने के लिए कारगर कदम अब तक नहीं उठाए गए। कुछ दिन पहले दारमा क्षेत्र का सर्वेक्षण करने वाली टीम का कहना है कि दर गांव एक पुराने भूस्खलन क्षेत्र में बसा है। गांव के नीचे कोई भी कठोर चट्टान नहीं है, जिसके कारण कमजोर मिट्टी लगातार दरक रही है। दर गांव में 145 परिवार रहते हैं। सर्दियों के सीजन में कुछ परिवार निचले इलाकों में चले जाते हैं, लेकिन कुछ परिवार ठंड के बावजूद साल भर गांव में ही रहते हैं। दर में 80 फीसदी से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं, जो समय के साथ लगातार बढ़ रही हैं। यहां के भाटखोला तोक को साल 1974 में ही विस्थापित कर दिया गया था, लेकिन अब क्योंकि पूरा गांव ही खतरे की जद में है, इसलिए सभी परिवारों के विस्थापन के लिए जल्द से जल्द कारगर कदम उठाने की जरूरत है।