बागेश्वर: अगर मन में ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है। अब बागेश्वर के रहने वाले पूरन सिंह राठौर का ही उदाहरण ले लें।
Story of Uttarakhand Puran Singh Rathore
पूरन देख नहीं पाते, लेकिन इनका शानदार काम दुनिया देख रही है। दृष्टिबाधित पूरन राठौर लोकविधा के जानकार हैं। उन्होंने उत्तराखंड की लोक विधा जागर, न्योली, हुड़काबौल के साथ ही राजुला मालूशाही लोक गाथा के गायन में महारत हासिल की है। रविवार को जब पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार विजेता पूरन सिंह राठौर की कला का जिक्र किया तो उत्तराखंड का ये लाल राष्ट्रीय फलक पर छा गया। पीएम ने कहा कि पूरन ने उत्तराखंड की लोक विधा में नई जान फूंकी है। उन्होंने उत्तराखंड के लोक संगीत में कई पुरस्कार जीते हैं। पीएम ने लोगों से अपील की कि उनके (राठौर) के बारे में जरूर पढ़ें। आज हर कोई पूरन सिंह राठौर के बारे में जानना चाहता है। पूरन सिंह राठौर बागेश्वर जिले के रीमा के रहने वाले हैं।
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39 साल के पूरन जन्म से ही दृष्टिबाधित हैं। बीते 15 फरवरी को जब उन्हें प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार मिला तो वो सुर्खियों में आ गए। प्रधानमंत्री ने भी मन की बात कार्यक्रम में पूरन का जिक्र किया। तब से जिले के लोगों में पूरन और पूरन की लोक विधा को लेकर जिज्ञासा और बढ़ गई है। पूरन ने दृष्टिबाधिता को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्होंने लोकविधा में महारत हासिल की और इसके प्रचार-प्रसार में जुट गए। दृष्टि बाधित पूरन की लोक कला के दीवानों की कमी नहीं है। वह इलाके में खासे चर्चित हैं। खुद प्रधानमंत्री ने भी पूरन सिंह बिष्ट के काम को सराहा है। मन की बात कार्यक्रम में अपने नाम का जिक्र होने से पूरन सिंह बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा कि वो लोक कला को बचाए रखने के प्रयास में हमेशा जुटे रहेंगे।