बागेश्वर: कुदरत ने उत्तराखंड को अपनी अनमोल नेमतों से नवाजा है। दुख की बात ये है कि हम इन नेमतों का सम्मान न कर शहरों की भागदौड़ में गुम होने को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।
Bageshwar Balwant Karki Timur Farming
अपना उत्तराखंड औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों से समृद्ध बना है, अगर हम इन्हें रोजगार से जोड़ दें तो पहाड़ में बेरोजगारी की समस्या दूर हो सकती है। आज हम आपको पहाड़ के एक ऐसे ही युवा के बारे में बताने वाले हैं, जिन्होंने तिमूर की खेती को रोजगार का जरिया बनाया और इसके दम पर खूब पैसा कमा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं बागेश्वर के रहने वाले बलवंत सिंह कार्की की, जो कि रमाड़ी गांव में रहते हैं। कुछ अलग करने की चाह ने उन्हें तिमूर की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। तीन साल पहले लगाए गए उनके तिमूर के पौधे न केवल अब फल देने लगे हैं। बल्कि इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी लगातार मजबूत हो रही है। तिमूर आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है। लोग इसकी कद्र नहीं करते, लेकिन ये बेहद फायदेमंद है। तिमूर का उपयोग दंतमंजन बनाने के साथ ही मसालों में किया जाता है। साथ ही आयुर्वेदिक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। आगे पढ़िए
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बलवंत बताते हैं कि कुछ साल पहले चमोली जिले के पीपलकोटी और फिर पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी में इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ था। बलवंत ने इस बारे में सुना तो उन्होंने भी इसकी खेती के बारे में सोचा। बलवंत ने अपने बगीचे में तिमूर के चार सौ से अधिक पौधे लगाए थे। आज तीन साल बाद उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। उनके लगाए पौधे फल देने लगे हैं। इसी के साथ रमाड़ी गांव तिमूर का व्यावसायिक उत्पादन करने वाला उत्तराखंड का तीसरा स्थान भी बन गया है। बलवंत ने हाल में तिमूर के बीज के छिलके भी बेचे, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। तिमूर के बीज के छिलके ही नहीं बल्कि इसकी पत्तियां और लकड़ी भी अच्छे दामों में बिकती है। बलवंत ने साबित कर दिया कि मेहनत के दम पर असंभव लक्ष्य को भी पाया जा सकता है, उनकी सफलता क्षेत्र के दूसरे युवाओं को भी स्वरोजगार अपनाने की सीख दे रही है।