उत्तराखंड रुद्रप्रयागWomen Made Eco Friendly Rakhis From Pine Laves in Uttarakhand

Uttarakhand News: पिरुल की राखियों की देश भर में डिमांड, पहाड़ की महिलाओं ने स्वरोजगार में रचा इतिहास

उत्तराखंड में हुनर की कोई कमी नहीं हैं यहाँ की महिलाएं आज हर क्षेत्र में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं। पहाड़ में उचित संसाधनों की कमी के चलते अक्सर लोग पलायन कर जाते हैं लेकिन कई प्रतिभावान लोग आज भी पहाड़ में रहकर यहाँ का नाम रोशन कर रहे हैं।

Independence day 2024 Uttarakhand
Rakhis made from Pine Leaves: Women Made Eco Friendly Rakhis From Pine Laves in Uttarakhand
Image: Women Made Eco Friendly Rakhis From Pine Laves in Uttarakhand (Source: Social Media)

रुद्रप्रयाग: मणिगुह गांव की महिलाओं ने इस बार राखी का त्योहार खास बना दिया है। उन्होंने आत्मनिर्भरता की ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। महिलाओं ने चीड़ की पत्तियों से खूबसूरत राखियों बनाई है, जिसे Hamara Gaon Ghar Foundation के सहयोग से भारत के कई शहरों में बेचा जा रहा है। अपने पहले प्रयास में ही महिलाओं ने 12 हजार से अधिक राखियां बेचकर सफलता का नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

Women Made Eco-Friendly Rakhis From Pine Laves in Uttarakhand

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को दर्शाता है, लेकिन राखी बनाने की प्रक्रिया भी खास है। उत्तराखंड में चीड़ के पत्तों से बनी राखियों की कहानी इसी बात को उजागर करती है। ये राखियां न केवल लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाती हैं, बल्कि प्रकृति को भी सहारा देती हैं और एक पारंपरिक विरासत को संजोती हैं। उत्तराखंड में चीड़ के पत्तों को पिरूल कहा जाता है, इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। चीड़ के पेड़ भारत और विश्वभर में पाए जाते हैं और इनका उपयोग कई विदेशी उत्पादों में होता है।

पिरूल से स्थानीय अर्थव्यवस्था हो रही है सशक्त

अब देश भी पिरूल की उपयोगिता समझ रहा है और इसे एक वरदान के रूप में देख रहा है। उत्तराखंड में हस्तशिल्पकार पिरूल से आभूषण, टोकरी, सजावटी सामान, ग्रीन टी और यहां तक कि कुकीज़ भी बना रहे हैं। इस तरह पिरूल ने न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त किया है, बल्कि वैश्विक बाजार में भी अपनी जगह बनाई है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में हमारा गांव घर फाउंडेशन पिरूल हस्तशिल्प की कला को बढ़ावा दे रहा है। इस फाउंडेशन के सहयोग से गांव की महिलाएं पिरूल से खूबसूरत राखियां बना रही हैं, जो प्रकृति के साथ जुड़ने का एहसास भी देती हैं।

  • देश भर से मिल रहे हैं राखियों के ऑर्डर

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    पिछले साल की तरह इस साल भी ये राखियां देशभर में प्रसिद्ध कलाकारों, शिक्षाविदों और फिल्मकारों तक पहुंच रही हैं। यह पहल न केवल स्थानीय महिलाओं को सशक्त बना रही है, बल्कि पिरूल की पारंपरिक कला को भी पुनर्जीवित कर रही है। पिरूल के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण लेने के बाद रक्षाबंधन के त्योहार को ध्यान में रखते हुए महिलाओं ने सबसे पहले राखी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया और जल्द ही इस कला में महारत हासिल कर ली। उनके द्वारा बनाई गई सुंदर राखियों ने देश भर से ऑर्डर प्राप्त किए, जिससे उनकी कला की सराहना हर कोने में होने लगी।

  • अभी तक बेचीं गई हैं बारह हजार पिरूल की राखियां

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    हमारा गांव घर फाउंडेशन के संस्थापक सुमन मिश्रा ने बताया कि इस पहल में गांव की आठ महिलाओं ने भाग लिया, जिनमें से पांच का काम विशेष रूप से सराहा गया। इस बार करीब बारह हजार पिरूल की राखियां बेची गईं, हालांकि समय कम था और महिलाओं ने एक महीने पहले ही प्रशिक्षण प्राप्त किया था। ये राखियां न केवल सुंदर हैं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का एहसास भी कराती हैं। सुमन मिश्रा ने कहा कि इन राखियों को बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा, मध्यप्रदेश और पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों में बहुत सराहा गया है।