देहरादून: राज्य के 77 शहरों में से किसी में भी सीवेज नेटवर्क की व्यवस्था नहीं की गई है। वहीं 28 शहरों में जो सीवेज नेटवर्क मौजूद है, वह भी केवल आधा-अधूरा ही है। सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है और सभी शहरों में शीघ्रता से सीवेज नेटवर्क विकसित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
77 Cities in Uttarakhand Still Lack Sewage Network
शहरी विकास को सशक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन पर जोर दे रही हैं। इस दिशा में अनेक योजनाएं लागू की जा रही हैं ताकि शहरी क्षेत्रों में सफाई और स्वास्थ्य का स्तर बेहतर बनाया जा सके। शहरी विकास विभाग की अनेक योजनाओं के तहत नदियों में सीवेज के गंदगी को रोकने के लिए नमामि गंगे परियोजना का संचालन हो रहा है। इसके बावजूद उत्तराखंड के शहरी इलाकों में सीवेज नेटवर्क की स्थिति अत्यंत गंभीर बनी हुई है।
वर्तमान में 77शहरों में नहीं है सीवेज नेटवर्क
राज्य में शहरी क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, लेकिन वहां सीवेज नेटवर्क की स्थापना की गति बेहद धीमी है। वर्तमान में 77 शहर ऐसे हैं, जिनमें कोई सीवेज नेटवर्क नहीं है। यदि निकट भविष्य में नगरीकरण की प्रक्रिया में आने वाली नौ ग्राम पंचायतें भी शहरी क्षेत्रों में शामिल हो जाती हैं, तो यह संख्या बढ़कर 86 तक पहुंच सकती है।
उत्तराखंड में अधूरा सीवेज नेटवर्क, स्वच्छता की चुनौती
यह आश्चर्यजनक है कि जिन 28 शहरों में सीवेज नेटवर्क मौजूद है वह भी अधूरा है। इसका मतलब है कि कोई भी शहर पूरी तरह से सीवेज नेटवर्क से ढका हुआ नहीं है। पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के लिए यह स्थिति चिंताजनक है। जहां 71.05 प्रतिशत भूमि वन क्षेत्र है और गंगा-यमुना जैसी नदियों का उदगम होता है, शहरों और गांवों में स्वच्छता सुनिश्चित करना आवश्यक है। पिछले 10 वर्षों में नमामि गंगे परियोजना सहित कई योजनाएं संचालित की गई हैं, लेकिन प्रगति धीमी है। यहां तक कि राजधानी देहरादून समेत 11 नगर निगम क्षेत्र भी पूरी तरह से सीवेज नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं।
सीवेज नेटवर्क के लिए 20 हजार करोड़ की जरुरत
अगले साल ऋषिकेश और हरिद्वार को सीवेज नेटवर्क से जोड़ने का दावा किया जा रहा है, लेकिन वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है। सरकार को सीवेज नेटवर्क विकसित करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का बड़ा बजट चाहिए, जो राज्य के आर्थिक संसाधनों को देखते हुए चुनौतीपूर्ण है। फिर भी इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सकता था और अब शहरों में इसके लिए गहन अध्ययन कराने का निर्णय लिया गया है।