देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के कारण उत्तराखंड में स्थित सभी ग्लेशियरों के पिघलने की तीव्रता बढ़ रही है। जो कि आने वाले समय में राज्य के लिए एक बढ़ा खतरा बन सकता है। इस विषय में विशेषज्ञों की भी चिंता बढ़ती जा रही है।
Global warming melting 900 glaciers might bring disaster
देहरादून में स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के विशेषज्ञों का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्तराखंड में स्थित सभी 900 ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जिनमें से गंगोत्री, सतोपंथ, भागीरथी और रायखाना ग्लेशियर सबसे तेजी से पिघल रहे हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिसर्च के अनुसार में पिघलते ग्लेशियरों से सम्बंधितखतरों में वृद्धि की होने की संभावना है।
तेजी से पिघल रहे 900 ग्लेशियर
संस्थान के डॉ मनीष मेहता ने कहा कि ग्लेशियरों का पिघलना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन जिस तीव्रता से राज्य में ग्लेशियर पिघल रहे हैं वो एक चिंता का विषय है। हिमालय क्षेत्र में 9,575 ग्लेशियर हैं, जिनमें से 900 ग्लेशियर उत्तराखंड में हैं और ये सभी ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के कारण तापमान में वृद्धि होती है, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया ज्यादा तीव्र होती है। डॉ मेहता ने कहा कि, ग्लेशियरों के पिघलने के कारण क्षेत्र में पानी की कमी हो सकती है। पानी की कमी का असर बिजली उत्पादन पर भी पड़ेगा। इसके अलावा ये क्षेत्रीय विनाश का भी कारण बन सकता है। डॉ मनीष मेहता ने कहा कि ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को पूरी तरह से रोकना तो असंभव है। लेकिन इसके लिए कुछ उपायों को करने से पिघलने की गति कम की जा सकती है।
अधिक से अधिक वन-वृक्षरोपण ही एकमात्र उपाय
डॉ मेहता ने ग्लेशियरों के पिघलने की गति को रोकने के लिए पहला उपाय ये बताया कि, हमें ज्यादा-से ज्यादा वनरोपण करना होगा, पेड़ों के सुरक्षा करनी होगी। ग्लेशियरों के आस-पास अधिक हरित क्षेत्र बनाए रखने से भी ग्लेशियरों का पिघलना कम हो सकता है। पर्यावरण को जितना हो सके स्वच्छ रखना होगा। ब्लैक कार्बन गैस, डीजल इंजन और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों और जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्तपन्न होने वाला ब्लैक कार्बन की वृद्धि भी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का एक मुख्य कारक है। हालांकि ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों के पिघलने का एक प्रमुख कारण है, लेकिन केंद्र सरकार ने न तो हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के अनुमानित नुकसान पर कोई शोध किया है और न ही निकट भविष्य में इसके नुकसान का कोई अनुमान लगाया है।