उत्तराखंड Gaura devi the chipko women from india

उत्तराखंड: 1974 में आज ही के दिन हुआ था दुनिया का सबसे अनूठा आंदोलन..मातृ शक्ति को नमन

1974 में आज ही के दिन रैणी गाँव, चमोली की महिलाओं ने गौरा देवी जी के नेतृत्व में पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी।

उत्तराखंड न्यूज: Gaura devi the chipko women from india
Image: Gaura devi the chipko women from india (Source: Social Media)

: उत्तराखंड के लोग यानी हमारे पूर्वज हमेशा से ही जल, जीवन ,ज़मीन और जंगल की रक्षा के लिए सबसे आगे खड़े रहे हैं। कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने उत्तराखंड के समाज और संस्कृति को सहेजने के लिए आन्दोलन तक कर डाले थे। आज उत्तराखंड का मान सम्मान कही जाने वाली गौरा देवी के बारे में भी कुछ बातें जान लीजिए। इस शक्ति ने वो आंदोलन शुरू किया था, जो पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था। चिपको आंदोलन की जननी हैं गौरा देवी, जिन्हें उत्तराखंड युगों युगों तक याद रखेगा। गौरा देवी का जन्म 1925 में चमोली जिले के लाता गांव में हुआ था। मात्र 11 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। शादी के बाद वे अपने ससुराल रैंणी गांव चली गयी थीं। साल 1974 की बात है जब रैंणी गांव में सड़क निर्माण के लिए 2451 पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही थी। कोई नहीं जानता था कि ये तैयारी एक बड़े आंदोलन को जन्म दे देगी।

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कोई नहीं जानता था कि एक आंदोलन की वजह से उत्तराखंड की नारी शक्ति का नाम दुनियाभर में सम्मान से लिया जाएगा। लेकिन वो वक्त आ ही गया। ठेकेदार और जंगलात द्वारा पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही है। बताया जाता है कि गांव के सभी पुरुष किसी वजह से गांव से बाहर गए थे। इसके बाद भी गोपेश्वर में महिलाओं द्वारा एक रैली का आयोजन किया गया। इस रैली का नेतृत्व गौरा देवी ने किया था। पहाड़ की एक सीधी साधी सी नारी अब शक्ति का रूप ले चुकी थी। गौरा देवी ने सभी महिलाओं में नारी शक्ति की भावना को जागृत करने का काम किया। यहां से एक रिवॉल्यूशन का जन्म हो गया। पेड़ों को बचाने के लिए सभी महिलाएं पेड़ों से चिपक गयी। महिलाओं को श्रमिकों ने जान से मारने की धमकी दी, लेकिन मजाल है कि पहाड़ की नारी शक्ति पर एक खंरोच भी आई हो।

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शर्म की बात तो तब हुई जब श्रमिकों द्वारा महिलाओं पर थूका गया। लेकिन पहाड़ की महिलाएं किसी भी कीमत पर अपने पेड़ों को कटने नहीं देना चाहती थी। आखिर में हार कर ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी | पेड़ों को बचाने के लिए उनपर चिपकने की वजह से इस आन्दोलन का नाम “चिपको आन्दोलन” पड़ा | पर्यावरण के प्रति अतुलनीय प्रेम का प्रदर्शन करने के लिए गौरा देवी ने ऐतिहासिक काम किया था। पर्यावरण की रक्षा के लिये अपनी जान को भी उन्होंने ताक पर रख दिया था। गौरा देवी ने के इस काम ने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से “चिपको वूमेन फ्राम इण्डिया” बना दिया। ये साबित हो गया कि पहाड़ की महिलाएं संगठित होकर किसी भी कार्य को सफल बना सकती हैं | गौरा देवी को 1986 में पहला वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया था। नमन इस नारी शक्ति को।

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