उत्तराखंड story of chandra singh chauhan of uttarakhand

गढ़वाल राइफल का जांबाज..रिटायर हुआ, तो 400 युवाओं को सेना के लिए तैयार किया

गढ़वाल राइफल का वीर..जो सेना में रहकर आतंकियों का काल बना और रिटायर होने के बाद उत्तराखंड के युवाओं को देश की सेना के लिए तैयार कर रहा है।

garhwal rifle: story of chandra singh chauhan of uttarakhand
Image: story of chandra singh chauhan of uttarakhand (Source: Social Media)

: दिसबंर 1990 ..भारतीय सेना को खबर मिली थी की जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और गांधरबल इलाके में आतंकियों के शिविर हैं। इस जानकारी पर 13 गढ़वाल राइफल्स ने इलाके की घेराबंदी कर सर्च आपरेशन चलाया। इस आपरेशन में हवलदार चंद्र सिंह चौहान को एक सेक्शन की कमान सौंपी गई। गोलाबारी में आतंकियों ने सेना की टुकड़ी पर ग्रेनेड फेंक दिया। जिसके बाद हवलदार चौहान ने अपनी जान की परवाह किए बिना सूझबूझ से उसी ग्रेनेड को वापस आतंकियों के शिविर में फेंक दिया। इस ही झटके में चंद्र सिंह चौहान ने 5 आंतकवादियों को ढेर कर दिया। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें साल 1999 में सेना मेडल से सम्मानित किया गया। ऐसे हैं उत्तराखंड के वीर सपूत..पहले सेना में रहकर देश की सेवा की और अब रिटायर्ड होने के बाद भी वो देश की सेवा ही कर रहे है।

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उनकी जिन्दगी का मकसद ही देशभक्ति है। सेना में रहकर कई ऑपरेशन में हिस्सा लिया और कई आतंकियों को मार गिया। अब जब वो रिटायर्ड हुए तो आराम करने के बजाय उन्होंने ग्रामीण युवाओं के भविष्य को संवारने के साथ उनके अंदर देशभक्ति की अलख जगाने की जिम्मेदारी उठा ली है। वो युवाओं को सेना में भर्ती होने का निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे है। बीते दो साल में उन्होंने चार सौ से ज्यादा ग्रामीण नौजवानों को ट्रैनिंग देकर तैयार किया है। जौनसार के दुधौऊ गांव के रिटायर्ड कैप्टन चंद्र सिंह चौहान की क्लास अब उत्तराखंड में मशहूर हो रही है। चंद्र सिंह चौहान कौन हैं, जरा उनकी युद्ध क्षंमता के बारे में भी जानिए। चंद्र सिंह साल 1982 में सेना में भर्ती हुए। लैंसडौन में ट्रैनिंग के बाद साल 1983 में वो 13 गढ़वाल राइफल्स में शामिल हुए। ये वही दौर था जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था।

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इसी दौरान चंद्र सिंह भी भारतीय सेना के ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार में शामिल हुए। साल 1985 में असम, नागालैंड, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट और उल्फा, बोडो आतंकियों के खिलाफ चले सेना के ऑपरेशन में शामिल रहे। साल 1987 में सरकार के शांति रक्षक सेना में उनका चयन हुआ और वो श्रीलंका मिशन पर गए। उन्होंने अपनी यूनिट के साथ मिलकर एलटीटी के आतंकियों को मार गिराया। सेना में इंस्ट्रक्टर की भूमिका निभाने वाले चंद्र सिंह चौहान ने साल 2003 में भूटान आर्मी को ट्रैनिंग दी। 2005 में केरल के एनसीसी इंस्ट्रक्टर की सेवा दी। सेना में लंबी सेवा के बाद साल 2010 में चंद्र सिंह चौहान ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए। लेकिन आज भी उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है। आतंकियों से लोहा लेने के बाद आज वो नौजवानों को ट्रैनिंग दे रहे है ताकि वो सेना में जाकर आंतकियों का खात्मा कर सके।