: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक बड़ा आदेश दिया है। राज्य के उपनल कर्मचारियों को एक साल के भीतर नियमावली के मुताबिक नियमित करने के आदेश दिए गए हैं। इसके आलावा कोर्ट का कहना है कि उपनल कर्मियों को न्यूनतम वेतनमान दिया जाए। इसके साथ ही कोर्ट की तरफ से साफ कर दिया गया है कि सरकार द्वारा कर्मचारियों को दिए जाने वाले एरियर में GST और सर्विस टैक्स की कटौती ना हो। कोर्ट का फैसले ये फैसला उत्तराखंड में अलग अलग विभागों में काम कर रहे 20 हजार से ज्यादा उपनल कर्मियों के लिए बड़ी सौगात की तरह है। अब आपको बताते हैं कि आखिर ये मामला उठा कहां से।
बीते दिनों हाई कोर्ट ने सरकार से सवाल किया था कि उपनल कर्मचारियों को नियमित करने के लिए आखिर क्या रणनीति बनाई गई है?
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हाईकोर्ट के सवाल के जवाब में सरकार की ओर से बताया गया कि इस मामले पर विचार किया जा रहा है। दरअसल याचिकाकर्ता कुंदन सिंह नेगी द्वारा मुख्य न्यायाधीश को इस बारे में पत्र लिखा गया था। हाई कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया और इस पर सुनवाई शुरू की। अब हाई कोर्ट की तरफ से उपनल कर्मियों को नियमावली के मुताबिक नियमित करने के आदेश दिए गए हैं और साथ ही उन्हें न्यूनतम वेतनमान देने का भी आदेश दिया गया है। आपको बता दें कि उत्तराखंड में विभागों, संस्थानों और निगमों में 20 हजार से ज्यादा उपनल कर्मचारी कार्यरत हैं। ऊर्जा के तीनों निगमों में करीब 1200 उपनल कर्मी हैं। एक उपनल कर्मी को हर महीने सरकार द्वारा करीब 12 हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जाता है।
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इस आधार पर सरकार कुल मिलाकर करीब 25 करोड़ रुपये महीने का मानदेय दे रही है। साल भर का हिसाब लगाएं तो ये करीब 300 करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। अगर उपनल कर्मी नियमित होते हैं तो सरकार पर सालाना करीब 1 हज़ार करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ पड़ेगा। वहीं बात ऊर्जा के तीनों निगमों में तार्यरत उपनल कर्मियों की करें तो उनके नियमितीकरण के मामले में 14 नवंबर को सुनवाई होनी है। हाईकोर्ट की एकलपीठ में इस मामले की सुनवाई होगी। दरअसल हाई कोर्ट ने ऊर्जा निगम के कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश पहले ही पारित कर दिए थे। इसके खिलाफ ऊर्जा निगमों द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। पुनर्विचार याचिका को भी कोर्ट ने खारिज किया और एक बार फिर स मामला कोर्ट तक पहुंचा है। अब इस पर सुनवाई 14 नवंबर को होनी है।