उत्तराखंड देहरादूनstory of tejaswini bahuguna of uttarakhand

देवभूमि की तेजस्विनी ने तोड़ी समाज की बंदिशें..पिता की अर्थी को कंधा दिया, खुद दी मुखाग्नि

ये बदलते दौर की बेटियां हैं, जो समाज की रूढ़िवादी सोच को तोड़कर आगे बढ़ती जा रही हैं। उत्तराखंड की इस बेटी को भी सलाम।

उत्तराखंड: story of tejaswini bahuguna of uttarakhand
Image: story of tejaswini bahuguna of uttarakhand (Source: Social Media)

देहरादून: ये वो बेटियां हैं, जो नए दौर में लड़कों में साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, तो लड़कों से बेहतर जिम्मेदारियों को निभा भी रही हैं। किसी भी समाज के उत्थान की सबसे बड़ी वजह हैं बेटियां। हमें गर्व है कि बदलते दौर में बेटियां उन जिम्मेदारियों को बखूबी उठा रही हैं, जिन जिम्मेदारियों पर रूढ़िवादी समाज ने सिर्फ बेटों का हक दिखाया था। इन्हीं में से एक बेटी हैं तेजस्विनी बहुगुणा। 15 साल की तेजस्विनी उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी स्वर्गीय अभय बहुगुणा की बेटी हैं। टीचर्स कॉलोनी गोविंदगढ़ में रहने वाले राज्य आंदोलनकारी अभय बहुगुणा का निधन 26 नवंबर को हुआ था। पिता की आकस्मिक मृत्यु हुई तो 15 साल की तेजस्विनी ने ना सिर्फ परिवार को ढाढस बंधाया बल्कि मृत्यु के उपरांत निभाए जाने वाले क्रियाकर्मों को भी निभाने का प्रण लिया।

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जब अभय की पार्थिव देह को घर लाया गया, तो उनती बूढ़ी मां की आंखें आंसुओं के सैलाब से भर आई थीं। मन में इस बात की भी चिंता थी कि आखिर बेटे के अंतिम संस्कार की रस्में कौन पूरी करेगा। दादी इसी परेशानी में थी और अपने बेटे की अर्थी को निहार रही थी। दादी की बेबसी को 15 साल की पोती तेजस्विनी अच्छी तरह से समझ रही थी। तेजस्विनी ने कहा कि अपने पिता का अंति संस्कार मैं खुद पूरा करूंगी।

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तेजस्विनी ने पिता की अर्थी को कंधा दिया। इतना ही नहीं हरिद्वार के खड़खड़ी घाट पर उन्हें मुखाग्नि भी दी। अब 15 साल की तेजस्विनी क्रियाकर्म और अन्य सभी रस्मों को भी खुद ही विधि-विधान से निभा रही है। पिता ने तेजस्विनी को हमेशा से आत्मविश्वास से लड़ना सिखाया। मां विनीता बहुगुणा कहती हैं कि तेजस्विनी का ये ही आत्मविश्वास आज परिवार के लिए संबल बना है। शाबाश बेटी।