उत्तराखंड देहरादूनStory of rishikesh painter anjana

ऋषिकेश की दिव्यांग अंजना: कभी भीख मांगती थी, आज मुंहमांगे दाम पर बेचती है पेंटिंग

कहते हैं हुनर कभी भी पहचान का मोहताज नहीं होता। राज्य समीक्षा की कोशिश है कि आप तक ऐसी कहानियों को पहुंचाएं। पढ़िए एक सच्ची और अच्छी कहानी

उत्तराखंड: Story of rishikesh painter anjana
Image: Story of rishikesh painter anjana (Source: Social Media)

देहरादून: दिव्यांग..ये शब्द सुनते ही तस्वीर साफ हो जाती है कि वो शख्स कैसा होगा। लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड के ऋषिकेश की एक ऐसी दिव्यांग बेटी अंजना की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी अपना हौसला नहीं हारा। कभी फुपाथ पर भीख मांगकर अपना पेट पालने वाली अंजान आज एक बेहतरीन पेंटर हैं। दिव्यांग अंजना अब पैरों से पेंटिंग बनाती हैं और अपना गुजारा कर रहके जरिये जीविका चला रही है। आप ये जानकर भी हैरान होंगे कि अंजना की बनाई पेंटिंग आज पांच हजार रुपये तक बिक जाती है। क्या आप जानते हैं कि आखिर अंजना की जिंदगी में ये बदलाव कैसे आया? ये सब कुछ संभव हो पाया एक विदेशी महिला की प्रेरणा से। विदेश से आई मेहमान ने अंजना को जीने का हुनर सिखाया और फर्श से लेकर अर्श का सफर शुरू करवाया।

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स्वर्गाश्रम क्षेत्र में सड़क किनारे पैर से खूबसूरत पेंटिग बनाती अंजना को देखकर हर किसी की निगाहें थम जाती हैं। इसी ऋषिकेश के फुटपाथ पर 15 साल पहले अंजना ने भीख मांगना शुरू किया था। 2015 में अमेरिका की कलाकार स्टेफनी ऋषिकेश आईं। उन्होंने देखा कि अंजना अपने पैर की अंगुलियों से फर्श पर 'राम' शब्द उकेरने की कोशिश कर रही थी। स्टीफेनी को अंजना की प्रतिभा समझ में आई और उन्होंने अंजना को पेंटिंग का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। बस फिर क्या था ? अजना के सपने उड़ान भरने लगे। धीरे-धीरे वह एक मंझी हुई कलाकार बन गई। अंजना आज हर तरह की कलाकारी को कागज पर आकार देने लगी है। पेंटिंग के अच्छे दाम मिल रहे हैं। आज अंजना की पेंटिंग की सबसे कम कीमत 2 हजार रुपये है।

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अंजना को एक पेंटिंग तैयार करने में 5 दिन का वक्त लगता है। घर में बीमार पिता हैं, मां है और दिव्यांग भाई का भी सहारा है। कभी सड़क पर भीख मांगने वाली अंजना का परिवार अब ऋषिकेश में किराये के घर में रहता है। अब अंजना का सपना है कि वो अपना घर बनाए। शाबाश अंजना इसी तरह से आगे बढ़ती रहिए। जब हुनर हो तो भगवान भी साथ देता है।
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