उत्तराखंड Story of kandolia mahadev pauri garhwal

देवभूमि के कंडोलिया महादेव..जिन्हें कंडी में लेकर गढ़वाल आई थी कुमाऊं की एक बेटी

कंडोलिया देवता ...गढ़वाल और कुमाऊं में जिन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। इनकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है।

उत्तराखंड न्यूज: Story of kandolia mahadev pauri garhwal
Image: Story of kandolia mahadev pauri garhwal (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव को अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है। हर क्षेत्र में भगवान शिव के मंदिर स्थापित हैं, जहां उनका विधिवत अभिषेक किया जाता है, उनकी आराधना की जाती है। पौड़ी में भगवान शिव को कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है। कंडोलिया देव को भूम्याल देव भी कहा जाता है, क्योंकि वो क्षेत्र के ईष्टदेव हैं और सभी की रक्षा करते हैं। कंडोलिया मंदिर पौड़ी से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर चीड़ और देवदार के घने जंगल के बीच में स्थित है। यहां शिव की भूम्याल देवता यानि न्याय के देवता के रूप में पूजा होती है। जब इंसान हर ओर से निराश हो जाता है और न्याय मिलने की उम्मीद खत्म होने लगती है तो वो कंडोलिया देवता की शरण में आता है। कंडोलिया देवता के आशीर्वाद से लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर की स्थापना को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। मान्यता है कि कंडोलिया देवता चंपावत क्षेत्र के डुंगरियाल नेगी जाति के लोगों के ईष्ट गोरिल देवता हैं। कई साल पहले कुमांऊ की रहने वाली एक युवती का विवाह पौड़ी गांव में डुंगरियाल नेगी जाति के युवक से हुआ था। विवाह के बाद युवती अपने ईष्टदेव को कंडी यानि छोटी सी टोकरी में रखकर पौड़ी ले आई थी, तब से भूम्याल देव यहीं बस गए। कहा जाता है कि तबसे कंडोलिया देवता के रूप में उनकी पूजा होने लगी।

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प्रसिद्ध कंडोलिया मंदिर में इन दिनों वार्षिक भंडारे के आयोजन की तैयारी चल रही है। मंदिर में 16 जून को भंडारे का आयोजन होगा। इस कार्यक्रम में हजारों श्रद्धालु पहुंचेंगे। भंडारे से पहले भगवान कंडोलिया की डोली और प्रतिमाओं को स्नान के लिए देवप्रयाग संगम ले जाया जाएगा। देव प्रतिमाओं के वापस लौटने के बाद मंदिर में भंडारा होगा। मंदिर की स्थापना के बाद से भंडारे की परंपरा लगातार चली आ रही है। यहां हर साल तीन दिवसीय विशेष पूजा-हवन कार्यक्रम आयोजित होता है। इस दौरान स्थानीय और प्रवासी श्रद्धालु भगवान कंडोलिया का आशीर्वाद लेने अपने पैतृक गांव में जरूर आते हैं। इस साल ये आयोजन 16 जून को होने जा रहा है। गढ़वाल की समृद्ध परंपरा और आस्था का संगम देखना हो तो 16 जून को कंडोलिया चले आइए...यहां हर श्रद्धालु का दिल से स्वागत होता है। सुरम्य पहाड़ों के बीच बसे इस मंदिर में आने पर श्रद्धालु को जिस शांति और असीम आनंद का अहसास होता है, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यकीन मानिए यहां आकर आप निराश नहीं होंगे।