उत्तराखंड उत्तरकाशीnaugaon women left by her three son

देवभूमि की दुखद दास्तान..जिन बेटों को मां ने भूखा रहकर पाला, उन्होंने ही घर से निकाला दिया

सुमति देवी ने तीन बेटों को पाल-पोसकर बड़ा किया, लेकिन ये तीनों मिलकर एक मां को नहीं पाल सके...

उत्तरकाशी न्यूज: naugaon women left by her three son
Image: naugaon women left by her three son (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: मां तब भी रोती थी जब बेटा खाना नहीं खाता था, मां अब भी रोती है जब बेटा खाना नहीं देता है...हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां ये कहानी आम है। बुजुर्ग माता-पिता बच्चों पर बोझ बन गए हैं, दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं, अब ये कुसंस्कृति पहाड़ में भी पनपने लगी है। घर-संपति मिलने के बाद बेटे बुजुर्ग मां-पिता को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। उत्तरकाशी की सुमनी देवी भी ऐसे ही बदकिस्मत बुजुर्गों में शामिल है। सुमनी देवी के 3 बेटे हैं, जिन्हें उन्होंने पाल पोसकर बढ़ा किया, उनकी देखभाल की और उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला दिया। बेटों की परवरिश करते-करते मां की पूरी जवानी बीत गई और फिर बुढ़ापा आ गया। 85 साल की सुमनी को अब परिवार की, अपने बेटों की जरुरत थी, लेकिन ऐसे वक्त में बेटों ने उन्हें घर से निकाल दिया। जिस मां ने तीन बेटों को कभी बोझ नहीं समझा, वो तीन बेटे मिलकर एक मां को नहीं पास सके। सुमनी नौगांव की रहने वाली हैं। बेटों ने घर से निकाला तो ये बुजुर्ग महिला सड़क पर आ गई। कोई भी बेटा मां को अपने साथ नहीं रखना चाह रहा था। आगे पढ़िए..

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बुजुर्ग सुमनी बीमार थीं, आसरे के लिए नौगांव की सड़कों पर भटक रही थी। एक से दूसरी चौखट पर जाती, राहगीरों से मदद मांगती, मदद मिली तो ठीक वरना सड़क किनारे जहां जगह मिली, वहीं रह लेती। बुजुर्ग महिला की हालत बेहद खराब थी। कुछ दिन पहले एक आदमी ने पुलिस को इस बारे में सूचना दी । पुलिस ने सुमनी के बेटों का पता लगाया, उनसे बात की पर बेटे मां को ले जाने के लिए तैयार नहीं हुए। इसी बीच पुलिस ने सुमनी की बेटी को फोन किया। जिस बेटी को सुमनी पराया धन समझ चुकी थी, वही बेटी मां को सहारा देने के लिए आगे आई। मां के दर्द ने बेटी को भीतर तक झकझोर कर रख दिया। बेटी और दामाद बिना देरी किए बड़कोट से नौगांव पहुंच गए और सुमनी देवी को साथ ले गए। जब तक ऐसी बेटियां समाज में रहेंगी, तब तक बुजुर्ग माता-पिता अनाथ नहीं होंगे। उन्हें आसरे के लिए दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा। ये घटना उस समाज के मुंह पर करारा तमाचा है, जो बेटियों को बेटों से कमतर समझता है, उन्हें परिवार पर बोझ मानता है। बेटियां बोझ नहीं हैं। मुसीबत के वक्त वो परिवार का बोझ ना केवल बांट सकती हैं, बल्कि बुजुर्ग माता-पिता की का सहारा भी बन सकती हैं। ऐसी जीवट बेटियों को हमारा सलाम....