उत्तराखंड PAURI GARHWAL DM DS GABRIYAL

देवभूमि के इस DM को सलाम, मजबूत इरादों की बदौलत स्कूलों में शुरू कराई गढ़वाली क्लास

पौड़ी के स्कूलों में बच्चे गढ़वाली पढ़ने लगे हैं, जल्द ही दूसरे जिलों में भी गढ़वाली पढ़ाई जाएगी...

उत्तराखंड न्यूज: PAURI GARHWAL DM DS GABRIYAL
Image: PAURI GARHWAL DM DS GABRIYAL (Source: Social Media)

: पौड़ी के डीएम डी. एस. गर्ब्याल को बधाई। इन्होंने जो किया है, वो करना आसान नहीं था, लेकिन कहते हैं ना कि अच्छा काम करने के लिए बस पॉजिटिव सोच ही काफी होती है। डीएम डी. एस. गर्ब्याल गढ़वाली बोली-भाषा को बचाना चाहते थे। उन्होंने प्रयास किया कि बच्चों को इस पहल से जोड़ा जाए, स्कूलों में गढ़वाली पढ़ाने की शुरुआत की जाए। जहां चाह, वहां राह...देखते ही देखते गढ़वाली को स्कूलों के पाठ्यक्रम मे शामिल कर लिया गया, और सोमवार से पौड़ी के स्कूलों में बच्चे गढ़वाली पढ़ने भी लगे हैं। बच्चों के लिए गढ़वाली में जो पाठ्यक्रम तैयार किया गया, उसमें 13 शिक्षाविदों, साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों ने मदद की। कक्षा एक से 5 तक के बच्चे सोमवार से गढ़वाली पुस्तकें पढ़ने लगे हैं। और जानते हैं इन किताबों के नाम क्या हैं, इन्हें नाम दिया गया है धगुलि, हंसुलि, छुबकि, झुमकि और पैजबी, जो कि उत्तराखंड के पारंपरिक आभूषण हैं। सोमवार का दिन पौड़ी के लिए ही नहीं पूरे उत्तराखंड के लिए ऐतिहासिक दिन रहा। यहां ब्लॉक स्कूलों के बच्चे गढ़वाली में लिखी किताबें पढ़ने लगे। मॉडल रूप में चुने गए पौड़ी ब्लॉक के 79 स्कूलों में सोमवार से 51 हजार बच्चों को गढ़वाली पढ़ाई जाने लगी।

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कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक के बच्चों को गढ़वाली पढ़ाई जा रही है। गढ़वाली पढ़ने वाले बच्चे खुश हैं और गढ़वाली पढ़ाने वाले टीचर भी..छात्रों ने बताया कि गढ़वाली में लिखी गई किताबों में रोचक जानकारियां दी गई हैं। राज्य के इतिहास से लेकर लोकज्ञान, गीत, कविता, नाटक और कहानियों को किताबों में शामिल किया गया है। वहीं गढ़वाली पढ़ाने वाले शिक्षकों ने भी इसे अलग अनुभव बताया। गढ़वाली भाषा के संरक्षण के लिए ये अभिनव प्रयास करने का श्रेय जाता है पौड़ी के डीएम डी. एस. गर्ब्याल को। जिन्होंने गढ़वाली भाषा के संवर्धन के लिए शानदार काम किया है। ये डीएम डी. एस. गर्ब्याल की कोशिशों का ही नतीजा है कि जल्द ही रुद्रप्रयाग में भी गढ़वाली पढ़ाई जाने लगेगी। प्रदेश के दूसरे जिलों में भी क्षेत्रीय बोली-भाषाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारी चल रही है।