उत्तराखंड story of badrinath dham uttarakhand

कभी बदरीनाथ में विष्णु जी नहीं शिवजी का निवास था, छल और माया की ये कहानी जानिए

स्कंद पुराण में कहा गया है कि कभी भगवान शिव बदरीनाथ धाम में रहा करते थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्हें केदारपुरी जाकर बसना पड़ा...

उत्तराखंड न्यूज: story of badrinath dham uttarakhand
Image: story of badrinath dham uttarakhand (Source: Social Media)

: देवभूमि में स्थित चार प्रमुख धामों में से एक है बदरीनाथ धाम। कहते हैं बदरीनाथ धाम में साक्षात विष्णु विराजते हैं। पर कहा ये भी जाता है कि आज जिस भू-वैकुंठ धाम को हम बदरीनाथ के रूप में जानते हैं, वो कभी शिवधाम हुआ करता था। जहां बाबा केदार विराजा करते थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि शिव को ये जगह छोड़कर केदारनाथ को अपनी नगरी बनाना पड़ा, इस सवाल का जवाब हमें उस कहानी में मिलता है, जो स्कंद पुराण में वर्णित है। स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि बदरीनाथ धाम पहले भगवान शिव का धाम था। पर जब नारायण यहां वास करने लगे तो भगवान शिव बदरीधाम छोड़कर केदारपुरी चले गए। हालांकि बदरीनाथ में आज भी भगवान भोलेनाथ श्री आदि केदारेश्वर के रूप में दर्शन देते हैं। चलिए अब आपको शिवधाम के हरिधाम बनने की कथा बताते हैं। स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ नीलकंठ क्षेत्र और बामणी गांव के पास रहा करते थे।

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कहा जाता है कि ये क्षेत्र अत्यंत सुरम्य था और श्री हरि भी यहां बसना चाहते थे। फिर एक दिन भगवान विष्णु ने माया रची और एक बच्चे का रूप धर लिया। वो एक चट्टान पर बैठकर रोने लगे। बच्चे को रोता देख माता पार्वती दुखी हो गईं, उन्होंने भगवान शिव से बच्चे को साथ में ले जाने की जिद की। भगवान भोलेनाथ विष्णु की माया समझ गए थे, उन्होंने पार्वती को समझाया भी पर वो मानी नहीं। माता पार्वती बच्चे को तप्तकुंड में नहलाने के बाद स्वयं भी स्नान करने लगी। इसी बीच बच्चा दौड़कर बदरीनाथ धाम में गया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। तब से यहां भगवान विष्णु का निवास हो गया, जबकि भगवान भोलेनाथ केदारनाथ में विराजमान हो गए। हालांकि आज भी भगवान बदरीविशाल के दर्शन तभी संपूर्ण माने जाते हैं, जब श्रद्धालु पहले भगवान आदि केदारेश्वर के दर्शन करते हैं। श्रावण मास के चलते आदि केदारेश्वर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। बदरीनाथ के कपाट बंद होने से तीन दिन पहले आदि केदारेश्वर के कपाट बंद होते हैं। यहां भगवान विष्णु से पहले भगवान शिव का आशीर्वाद लेने का विधान है।