उत्तराखंड पौड़ी गढ़वालYouth doing self employment after left job in foreign

पौड़ी गढ़वाल के दो भाई, विदेश की नौकरी छोड़कर गांव लौटे..खेती से कर रहे शानदार कमाई

अजय और हरीश विदेश में जॉब कर रहे थे, पर गांव से हो रहा पलायन उन्हें वापस पहाड़ खींच लाया, जानिए इनकी कहानी

Migration in Uttarakhand: Youth doing self employment after left job in foreign
Image: Youth doing self employment after left job in foreign (Source: Social Media)

पौड़ी गढ़वाल: पलायन पहाड़ का दुर्भाग्य है, पर अगर पलायन रोकना है तो पहाड़ में ही रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। पौड़ी के एक छोटे से गांव में रहने वाले दो भाई इस बात को अच्छी तरह समझते थे। ये दोनों सालों पहले काम की तलाश में पहाड़ छोड़ गए थे, पर जब गांव के घरों में ताले लटके देखे तो उनका दिल तड़प उठा। दोनों ने गांव में रह कर ही कुछ करने की ठानी। जहां चाह, वहां राह...देखते ही देखते दोनों ने ऑर्गेनिक खेती करना शुरू किया, इससे इन दोनों भाईयों के साथ-साथ गांव के कई परिवारों की किस्मत चमक गई। इन भाईयों का नाम है अजय पंवार और हरीश पंवार। पौड़ी से करीब 16 किमी की दूरी पर स्थित है जामलाखाल गांव, अजय और हरीश इसी गांव में रहते हैं। अजय और हरीश रिवर्स पलायन की बेहतरीन मिसाल हैं। अजय और हरीश साल 2009 से विदेश में थे। अजय दुबई में काम करते थे जबकि हरीश कतर में जॉब कर रहे थे। बाद में उन्हें पता चला कि उनका गांव उजाड़ होता जा रहा है। गांव को संवारने के लिए वो साल 2018 में वापस लौट आए। आगे पढ़िए

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दोनों भाईयों ने ज्वालपा देवी समूह को अपने साथ जोड़कर ऑर्गेनिक खेती करना शुरू कर दिया। गांव की लगभग 35 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। खेती में बदलाव भी किए। काम चल निकला। पास में स्थित पड़िया गांव के युवा भी अजय और हरीश से प्रेरित होकर गांव लौट आए। दोनों गांवों के युवा अब क्षेत्र में ही ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। अजय कहते हैं कि आज गांव कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा रुपये कमा रही हैं। वो आथिक रूप से सशक्त हुई हैं। अजय कहते हैं, अभी हमें साल भर में 70.80 हजार का मुनाफा होता है। फिलहाल हम महिलाओं को सीमित काम और मजदूरी ही दे पाते हैं। ऑर्गेनिक उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं बननी चाहिए, ताकि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिले, साथ ही महिलाओं और बेरोजगारों के लिए रोजगार के अवसर भी जुटाए जा सकें। अजय और हरीश क्षेत्र के लिए मिसाल बन गए हैं, इन दोनों भाईयों से प्रेरित होकर दूसरे गांवों के युवा भी वापस पहाड़ लौट रहे हैं और अपने गांवों में खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं।