उत्तराखंड Rani dhana-warrior of kumaon

उत्तराखंड की वीरांगना...जानिए रानी धना की वीरता और शौर्य की कहानी

रानी धना को कुमाऊं की तीलू रौतेली कहा जाए तो गलत नहीं होगा, कुमाऊं मंडल में आज भी रानी धना की वीरता के किस्से गाकर सुनाए जाते हैं...

warrior of kumaon: Rani dhana-warrior of kumaon
Image: Rani dhana-warrior of kumaon (Source: Social Media)

: उत्तराखंड वीरों-वीरांगनाओं की भूमि है, यहां की वीरांगनाओं की कहानियां आज भी पहाड़ी अंचलों में सुनाई जाती हैं। गढ़वाल की वीरांगना तीलू रौतेली के बारे में तो लोग काफी कुछ जानते हैं, पर यहां हम आपको कुमाऊं की वीरांगना रानी धना के बारे में बताएंगे, जिनके जीवन की कहानी काफी हद तक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से मिलती-जुलती है। इस अमर कहानी जरिए आपको रानी धना को करीब से जानने का मौका मिलेगा। सदियों पहले कुमाऊं में एक रियासत हुआ करती थी अस्कोट, जहां राजा नारसिंह राज किया करते थे, उनकी पत्नी थीं रानी धना जो कि डोटी के रैंका शासक कालीचंद के पिता की भांजी थी। नार सिंह पूरे कुमाऊं पर कब्जा करना चाहता था, उनकी नजर काली पार के डोटी इलाके पर थी। जहां धना के मामा का बेटा कालीचंद शासन कर रहा था। नार सिंह ने अपनी मंशा धना को बताई तो उसने पति को ऐसा करने से मना किया, पर नार सिंह माना नहीं। युद्ध के लिए मल्ली डोटी पहुंच गया, उसे जीत भी लिया।

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मल्ली के बाद तल्ली डोटी पर कब्जे के लिए वो लंबे वक्त तक युद्ध लड़ता रहा, जिसने उसे बुरी तरह थका दिया था। वापसी के दौरान वो तल्ली डोटी की सीमा पर आराम कर रहा था, इसी बीच कालीचंद वहां पहुंचा और नारसिंह पर हमला कर उनके दोनों हाथ काट दिए। तड़पते नारसिंह की वहीं मौत हो गई। जैसे ही ये समाचार धना को मिला उसने पति की मौत का बदला लेने की ठान ली। उसने पति का शव काली पार लाकर अंतिम संस्कार पंचेश्वर में करने की शपथ ली। इस तरह धना ने पति के राजसी वस्त्र पहने और हूणदेशी घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ी। धना ने मल्ली डोटी में हाहाकार मचा दिया। धना और कालीचंद के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें धना की पगड़ी उतर गई। सबको पता चल गया कि वो एक स्त्री है। धना को बंदी बना लिया गया। कालीचंद ने धना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे धना ने इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया कि वो पहले पंचेश्वर में पति का अंतिम संस्कार करना चाहती है। कालीचंद तैयार हो गया। पंचेश्वर जाने के लिए काली नदी पार करनी थी। धना और कालीचंद तुंबियों के सहारे नदी पार करने लगे, पर धना ने कालीचंद की तुंबियों में पहले ही छेद कर दिए थे, जिस वजह से कालीचंद नदी में डूबने लगा। इसी बीच धना ने कटार निकाली और कालीचंद का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में धना ने पंचेश्वर में पति का दाह संस्कार किया और खुद भी पति की चिता में जलकर सती हो गई। धना की वीरता की कहानियां आज भी कुमाऊं में गाकर सुनाई जाती हैं।
कहानी साभार: काफल ट्री