उत्तराखंड चमोलीNAVENDU RATURI BLOG ABOUT VASUDHARA UTTARAKHAND

Incredible Uttarakhand: वसुधारा की अलौकिक यात्रा..नवेन्दु रतूड़ी की कलम से

जिस स्वर्ग की हम कामना करते हैं वो यही था..यह प्रकृति ही स्वर्ग है और इंसान ही इसको अपनी इच्छाओं के लिए नरक बनाने में लगा है।

उत्तराखंड न्यूज: NAVENDU RATURI BLOG ABOUT VASUDHARA UTTARAKHAND
Image: NAVENDU RATURI BLOG ABOUT VASUDHARA UTTARAKHAND (Source: Social Media)

चमोली: आज का सफर बहुत रोमांचकारी था..सुबह नहा धोकर मैं अकेले चल पड़ा वसुधारा की यात्रा पर। बदरीनाथ से माणा गाँव कुछ 3 किलो मीटर की दूरी पर है। सुंदर बर्फीली वादियों और अलकनन्दा नदी के साथ गुजरती बहुत चौड़ी सड़क चलते चलते हर एक जगह रुकने का मन करता और तस्वीर लेने का मन करता। बदरीनाथ मै रिलायंस जियो के मोबाइल नेटवर्क काफी अच्छे हैं, तो कुछ साथियों के फोन भी आ रहे थे। रितु ऋषिकेश से फोन कर रही थी तो लक्की भाई देहरादून से...इसी बीच हल्की बर्फबारी पड़नी शुरू हो गयी और मुझे इस अंतिम सीमा से सटे हिमालय की पहाडियों का सुंदर नजारा देखने को मिला। मैंने फोन होल्ड में रखने को कहा और यह तस्वीर कैद कर ली। उसके आगे मोबाइल नेटवर्क नहीं मिले। अब मैं माणा गांव आ गया था। यह गाँव भोटिया जनजाति का गाँव है और भारत-तिब्बत व्यापार भी यहां से हुआ करता था। ये व्यापार 1965 के बाद बन्द हो गया। यहाँ के लोग ऊँन से बुने सुंदर ,स्वेटर ,शाल ,स्कार्फ़ ,दन आदि बनाते हैं। मैंने भी एक हाथ से बुना ऊँन का स्वेटर यहां से 800 रुपये में खरीदा। यह आखिरी दिन था और सब लोग सामान सम्भाल रहे थे...गाँव में ढोल दमौ की थाप पर इन बर्फ के दिनों की खुशहाली के लोकगीत पर लोग लोकनृत्य कर रहे थे। घंटाकर्ण देबता को पूज कर उनके भी कपाट आज बन्द हो रहे थे...आगे चलते मुझे कुछ 4 लड़कियां मिली जो आपस में वसुधारा जाने की बात कर रही थी। माणा से वसुधारा कुछ 5 किलोमीटर की दूरी पर है। मैंने उन लड़कियों से पूछा कि क्या आप वसुधारा जा रही हैं। उन्होंने कहा कि सोच तो रहे हैं ‘बट लोग कह रहे हैं इटस नॉट फिसिबल टु गो दिस टाइम"। हल्की बर्फबारी शुरू हो गई थी और मौसम भी खराब था तो वो नही गई। भीम पुल पार करके और भारत की अंतिम चाय की दुकान को पार करके मैंने अकेले ही वसुधारा जाने का मन बना लिया। रास्ते भर का वो नज़ारा दिव्य और आलौकिक था। इसी रास्ते से पांडव स्वर्गारोहिणी गए थे...जिस स्वर्ग की हम कामना करते हैं वो यही था..यह प्रकृति ही स्वर्ग है और इंसान ही इसको अपनी इच्छाओं के लिए नरक बनाने में लगा है।
नवेन्दु रतूड़ी के फेसबुक पेज से साभार