उत्तराखंड नैनीतालHistory of haldwani

उत्तराखंड का अनोखा गांव..लोग कहते हैं कि यहां कई बार लोगों को अशर्फियां मिली

कमौला-धमौला वो जगह है जहां आज भी इतिहास के सबूत बिखरे मिलते हैं, यहां कई लोगों को हल चलाते हुए अशर्फियां भी मिली हैं...

Haldwani: History of haldwani
Image: History of haldwani (Source: Social Media)

नैनीताल: देवभूमि उत्तराखंड, ये वो जगह है जिसका संबंध पाषाण काल से लेकर पौराणिक काल तक से जोड़ा जाता है। यहां आदिमानवों की बस्ती होने के सबूत मिले हैं, सम्राटों ने यहां अश्वमेध यज्ञ भी कराए, पर अफसोस कि उत्तराखंड के इतिहास को लेकर अब भी गंभीरता से काम नहीं हो पाया है। यहां हर शहर, हर कस्बे में ऐतिहासिक सबूत बिखरे पड़े हैं, जिन्हें सहेजा जाना चाहिए। एक ऐसी ही कहानी हल्द्वानी के इतिहास को लेकर कही जाती है, कहते हैं यहां एक गांव है, जहां कई लोगों को हल चलाते हुए अशर्फियां भी मिलीं थीं। इस जगह को कहते हैं कमौला-धमौला, जहां प्राचीन काल के अवशेष मिला करते थे। आज कमौला में कुमाऊं रेजीमेंट का बहुत बड़ा फॉर्म है। इसी तरह गौलापार में कालीचौड़ का मंदिर है, जिसका पुरातात्विक महत्व है। यहां पास में बिजेपुर गांव है, जिसे राजा विजयचंद की गढ़ी कहा जाता था। कहते हैं कि इस जगह को एक अंग्रेज अफसर ने अपना ठिकाना बनाया था, अंग्रेज अफसर से प्रेरित होकर लोग यहां बसने लगे। इसी तरह कालाढूंगी के बसने के पीछे भी अलग कहानी है। कहते हैं यहां काले रंग का पत्थर मिलता था, जिस वजह से इसे कालाढूंगी कहा जाने लगा।

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अंग्रेजों ने यहां लोहा बनाने का कारखाना खोला था। जिम कॉर्बेट ने अपनी किताब ‘माई इंडिया’ में उस कारखाने का जिक्र भी किया है। बताया जाता है कि लोहा बनाने के लिए यहां के जंगलों को काटने की जरूरत थी, अंग्रेज पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसीलिए कारखाने को बंद कर दिया गया। कालाढूंगी में जिम कॉर्बेट का एक बंगला है, जिसे साल 1967 में म्यूजियम में बदल दिया गया। इसी तरह फतेहपुर गांव का भी ऐतिहासिक महत्व है, यहां अंग्रेजों ने बावन डाठ नाम का पुल बनाया था। पुल के ऊपर से नहर गुजरती है, जिससे आस-पास के गांवों को सिंचाई के लिए पानी मिलता है। अंग्रेज शिकारी अक्सर यहां आया करते थे। रानीबाग में जिम कॉर्बेट के रहने के लिए रॉक हाउस बनाया गया था, पर अब ये खंडहर में तब्दील हो चुका है। जिम कॉर्बेट एक शिकारी और पर्यावरण प्रेमी होने के साथ-साथ अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने कई लोकप्रिय किताबें लिखीं। साल 1947 में वो कीनिया जाकर बस गए थे, जहां साल 1955 में उनका निधन हो गया। उत्तराखंड में ऐतिहासिक महत्व वाली जगहों को सहेजने की जरूरत है। इनके संरक्षण से हमारा इतिहास बचेगा, साथ ही पर्यटन को बढ़ावा भी मिलेगा।