उत्तराखंड उत्तरकाशीTwo hundred families have employment in the gaurashali village of uttarkashi

देवभूमि का रोजगार वाला गांव..यहां हर परिवार के पास है रोजगार, मेहनत से बदली तकदीर

जो लोग ये सोचते हैं कि खेती से उनकी तरक्की नहीं हो सकती, उन्हें उत्तरकाशी के गौरशाली गांव को जरूर देखना चाहिए...

gaurashali village: Two hundred families have employment in the gaurashali village of uttarkashi
Image: Two hundred families have employment in the gaurashali village of uttarkashi (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: पलायन की वजह से पहाड़ के गांव उजाड़ हो रहे हैं। लोग खेतीबाड़ी से मुंह मोड़ रहे हैं। युवा शहरों में धक्के खा रहे हैं, जैसे-तैसे गुजर-बसर कर रहे हैं, पर अपने गांवों में खेती करना उन्हें अब भी घाटे का सौदा लगता है। जो लोग ये सोचते हैं कि खेती से उनकी तरक्की नहीं हो सकती, उन्हें उत्तरकाशी के गौरशाली गांव को जरूर देखना चाहिए। इस गांव में करीब 200 परिवार हैं। गांव का हर परिवार खेती-किसानी और स्वरोजगार से जुड़ा है। गांव के 80 फीसद लोग पशुपालन और मुर्गी पालन करते हैं। महिलाएं हों या फिर पुरुष, सभी आत्मनिर्भर हैं और अपनी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते। गौरशाली गांव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर है। ये गांव कई मायनों में पहाड़ के दूसरे गांवों से अलग है। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से इस गांव को ना सिर्फ संपन्न गांव की पहचान दिलाई, बल्कि दूसरों को भी उन्नति का रास्ता दिखाया। गांव में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की दिनचर्या भी बदल गई है। महिलाएं गाय-भैंस का दूध निकालती हैं, पुरुष उसे डेयरी तक पहुंचाते हैं। महिलाएं खेतों में काम करती हैं, तो पुरुष घर में भोजन तैयार करते हैं। यानि हर काम में महिलाओं की सहभागिता रहती है।

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गांव में ये बदलाव कैसे आया, चलिए बाते हैं। बात 2015 की है। गांव में रिलायंस फाउंडेशन की टीम आई थी, जिसने ग्रामीणों को खेती-किसानी की नई तकनीकें बताईं। फाउंडेशन ने गांव में 19 पॉलीहाउस भी लगाए। नगदी फसलों से अच्छी कमाई हुई तो ग्रामीणों ने खुद भी 8 बड़े पॉलीहाउस लगा दिए। अब यहां के किसान टमाटर, मटर, फूलगोभी, बंदगोभी और शिमला मिर्च से खूब मुनाफा कमा रहे हैं। गांव वाले दुग्ध उत्पादन से भी जुड़े हैं। गांव से हर दिन सौ लीटर दूध दुग्ध संघ की आंचल डेयरी में जाता है। गौरशाली गांव में इस वर्ष 350 टन आलू की पैदावार हुई। जबकि बीते सीजन में 60 टन मटर पैदा हुआ था। गांव से केवल ही वो ही परिवार बाहर रह रहे हैं जो कि सरकारी सेवाओं में हैं, दूसरे ग्रामीण पूरी तरह गांव में ही स्वरोजगार से जुड़े हुए हैं। पहाड़ का ये आत्मनिर्भर गांव प्रदेश के दूसरे गांवों के लिए मिसाल बन गया है। गौरशाली गांव को देखकर अब आस-पास के गांव वाले भी स्वरोजगार को अपनाकर आगे बढ़ रहे हैं।