उत्तराखंड पिथौरागढ़Soldier returned home serving the country and received a warm welcome

उत्तराखंड के इस गांव में नौजवानों के फौजी बनने पर होता है जश्न, 70 सालों से निभाई जा रही गौरवशाली परंपरा

चीन सीमा से सटे इस गांव के लोगों के लिए आज भी फौजी का स्थान सबसे ऊपर है, क्योंकि वो देश की सरहदों की रक्षा से जुड़े होते हैं...

Bothi village: Soldier returned home serving the country and received a warm welcome
Image: Soldier returned home serving the country and received a warm welcome (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: देवभूमि उत्तराखंड...इसे सैन्य भूमि भी कहते हैं। देश की सेना का हर पांचवा जवान उत्तराखंड से ताल्लुक रखता है। यही नहीं आईएमए से पास आउट होने वाला हर 12वां अफसर भी इसी सरजमीं पर पैदा हुआ है। यहां के युवाओं के लिए फौज का हिस्सा बनना सिर्फ एक नौकरी भर नहीं है। ये उनके लिए एक सपने के साकार होने जैसा है, और ये सपना सिर्फ एक युवा का नहीं, बल्कि पूरे गांव का होता है। इसी धरती पर एक ऐसा गांव भी है, जहां बेटों के फौज में भर्ती होने पर पूरे गांव में जश्न मनाया जाता है। फौजी बेटे का जोरदार स्वागत होता है। भव्य स्वागत की ये परंपरा पिछले 70 साल से निभाई जा रही है। इस गांव का नाम है बोथी, जो कि पिथौरागढ़ में है। ये गांव बरपटिया जनजाति का गांव है, जो कि पंचाचूली की गोद में बसा है। चीन सीमा से सटे इस गांव के लोगों के लिए आज भी फौजी का स्थान सबसे ऊपर है, क्योंकि वो देश की सरहदों की रक्षा से जुड़े होते हैं। इसीलिए गांव का कोई बेटा फौज में ट्रेनिंग पूरी कर घर लौटता है तो गांववाले उसका शानदार स्वागत करते हैं

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पारंपरिक वेशभूषा में सजे ग्रामीण ढोल नगाड़ों की थाप के साथ बेटों के फौज में भर्ती होने का जश्न मनाते हैं। मंगलवार को ये अनोखी परंपरा एक बार फिर निभाई गई। गांव में रहने वाले आनंद सिंह बोथियाल का बेटा जितेंद्र सिंह बोथियाल सेना में भर्ती होने के बाद पहली बार गांव लौटा तो पूरे गांव में जश्न मनाया गया। जितेंद्र सिंह गांव का सबसे कम उम्र युवा है, जिसे कि सेना में शामिल होने का मौका मिला है। रानीखेत के आर्मी सेंटर में ट्रेनिंग के बाद घर लौटे जितेंद्र के स्वागत का नजारा देखने लायक था। गाड़ी जैसे ही मदकोट से बोथी गांव पहुंची, गांव की महिलाएं और पुरुष पारंपरिक परिधानों में सजकर सड़क किनारे पहुंच गए। गाड़ी से उतरते ही जितेंद्र का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच पारंपरिक वेशभूषा में झूमते-गाते ग्रामीणों ने गांव के फौजी बेटे को उसके घर तक पहुंचाया। बेटे का ऐसा स्वागत देख पिता आनंद सिंह की आंखें भी छलछला उठीं। जितेंद्र के पिता आनंद सिंह जौलढुंगा मे दुकान चलाते हैं। बोथी गांव में 35 परिवार रहते हैं। जिनमें से ज्यादातर परिवारों के लोग सेना और अर्धसैनिक बलों में हैं। इस छोटे से गांव में सेना के प्रति खूब सम्मान है। यही वजह है कि गांव के युवा आज भी दूसरे करियर ऑप्शन की बजाय सेना में जाने को तरजीह देते हैं।