देहरादून: ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की तस्वीरें कुछ महीने पहले पूरी दुनिया में छाई हुई थीं। जंगल में लगी आग से आसमान नारंगी हो गया था। इस आग ने ऑस्ट्रेलिया के जंगलों को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई में सौ साल से भी ज्यादा वक्त लगेगा। ऑस्ट्रेलिया की खबर का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उत्तराखंड के जंगलों को भी आग से खतरा है। प्रदेश में 37.83 लाख हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ सकता है। प्रदेश का 11.28 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र हाई रिस्क जोन में है, जबकि बाकि हिस्सा मीडियम और लो रिस्क जोन में शामिल है। कभी हरियाली के लिए मशहूर रहे उत्तराखंड के जंगलों को आग (forest fire in Uttarakhand) लील रही है। आग की घटनाओं के चलते हमारे जंगल सिकुड़ रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य गठन से लेकर पिछले साल तक हुई वनाग्नि की घटनाओं से 38791 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। जंगल में लगी आग की वजह से वन विभाग को भी करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा।
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फायर सीजन को ध्यान में रखते हुए हाल ही में उत्तराखंड वन विभाग (Uttarakhand Forest Department) ने एक अध्ययन कराया था, जिसमें पता चला कि उत्तराखंड के 37.83 लाख हेक्टेयर जंगल को आग से खतरा है। फायर सीजन के दौरान उत्तराखंड के जंगल धधकने लगते हैं। अध्ययन में पता चला कि राज्य के कुल 53.48 लाख हेक्टेयर भूभाग में से 37.83 लाख हेक्टयर क्षेत्र जंगलों की आग की लिहाज से संवेदनशील है। रिपोर्ट में ये भी पता चला कि 15.64 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आग का कोई खतरा नहीं है। अब वन विभाग इसी रिपोर्ट के आधार पर फायर सीजन के दौरान जंगलों को आग से बचाने के इंतजाम कर रहा है। हाई, मीडियम और लो रिस्क जोन वाले क्षेत्रों में संवेदनशीलता के हिसाब से कर्मचारियों की तैनाती की जाएगी। फायर वॉचर और दैनिक श्रमिक भी तैनात किए जाएंगे। वन क्षेत्र को फायर सीजन (forest fire in Uttarakhand) में आग से बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग वन पंचायतों और ग्रामीणों की मदद लेने की योजना भी बना रहा है।