उत्तराखंड पिथौरागढ़Education minister impressed by gurna primary school students

पहाड़ के इस स्कूल के आगे शहरों के कॉन्वेंट स्कूल भी फेल, 5 बच्चों का सैनिक स्कूल के लिए चयन

प्राथमिक विद्यालय गुरना कहने को सरकारी स्कूल है, पर क्वालिटी एजुकेशन के मामले में ये प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहा है। इस स्कूल के 5 बच्चे सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के लिए चुने गए हैं...

gurna primary school: Education minister impressed by gurna primary school students
Image: Education minister impressed by gurna primary school students (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: पिथौरागढ़ का आदर्श प्राथमिक विद्यालय गुरना...वही स्कूल जिसके पांच छात्रों का चयन सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के लिए हुआ है। कहने को ये सरकारी स्कूल है, लेकिन सुविधाओं और शिक्षा के मामले में प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देता है। स्कूल के 5 बच्चों का सेलेक्शन सैनिक स्कूल के लिए होने के बाद से ये स्कूल लगातार सुर्खियों में है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री अरविंद अरविंद पांडेय भी इस स्कूल से खासे प्रभावित हुए। उन्होंने स्कूल का स्टेट्स मांगा है। शिक्षा मंत्री ने स्कूल के 5 बच्चों के सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की प्रवेश परीक्षा में सफल होने पर खुशी जताई। जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित इस स्कूल में बच्चों को कॉन्वेट स्कूलों जैसी शिक्षा दी जा रही है। सरकारी स्कूल गुरना में गरीब परिवारों के साथ-साथ शिक्षाधिकारियों और शिक्षकों के बच्चे भी एक छत के नीचे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। आगे जानिए इस स्कूल की खास बातें

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ये सरकारी स्कूल हर दिन नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है। यहां के छात्र नवोदय और सैनिक स्कूल के लिए चुने गए हैं। स्कूल की तस्वीर बदलने का श्रेय यहां के प्रधानाध्यापक सुभाष चंद्र जोशी को जाता है। एक वक्त था जब इस स्कूल में ताला जड़ने की नौबत आ गई थी, लेकिन शिक्षक सुभाष चंद्र जोशी की मेहनत और लगन की बदौलत आज स्कूल की छात्र संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। प्रदेश के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने भी इस स्कूल की तारीफ की। उन्होंने शिक्षा विभाग से इस स्कूल का ब्यौरा देने को कहा है। स्कूल के शिक्षक सुभाष चंद्र जोशी ने गुरना के सरकारी स्कूल की तस्वीर बदल कर असंभव को संभव कर दिखाया। उन्होंने बता दिया कि सरकारी स्कूलों की बदहाली का रोना रोने से बेहतर है कि हम इन्हें बदलने की कोशिश करें। उनकी तरह अगर पहाड़ के दूसरे शिक्षक भी अपने काम को जॉब से ज्यादा अपनी जिम्मेदारी समझें, तो सरकारी स्कूलों पर ताला जड़ने की नौबत नहीं आएगी।