पौड़ी गढ़वाल: पहाड़ों से भी मजबूत हौसला, संमदर की लहरों को चीर देने की ताकत रखने वाले, दिन में 14 घंटे सिर्फ युद्धस्तर की तैयारी करने वाले, आंखों में उबाल मारता खून और देशभक्ति का कभी ना खत्म होने वाला जुनून, ये है गढ़वाल राइफल Garhwal rifles । जिसे देश की सबसे ताकतवर और तेज तर्रार सेना कहा जाता है। गढ़वाल राइफल्स...शौर्य और पराक्रम का दूसरा नाम। हर साल उत्तराखंड के हजारों जवान गढ़वाल राइफल्स का हिस्सा बनने के लिए टेस्ट देते हैं, लेकिन गढ़वाल राइफल्स का हिस्सा बनने का गौरव कुछ ही नौजवानों को मिलता है। चलिए आज आपको गढ़वाल राइफल्स के इतिहास के बारे में बताते हैं, साथ ही इससे जुड़ा एक शानदार वीडियो भी आपको दिखाएंगे। वीर-वीरांगनाओं की भूमि गढ़वाल को देवभूमि होने के साथ साथ वीर भूमि होने का सौभाग्य भी हासिल है। गढ़वाली सैनिकों की वीरता और कर्तव्यपरायणता की कहानियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं। गढ़वाल का सैन्य इतिहास साल 1814-15 से शुरू हुआ। साल 1814 में खलंगा युद्ध में गोरखा रेजिमेंटों के साथ गढ़वाली सैनिकों ने भी हिस्सा लिया था। इन सैनिकों की वीरता से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने एक अलग रेजिमेंट की स्थापना की, जिसमें गढ़वाली लोग भर्ती हुए। गढ़वाल राइफल्स की स्थापना का श्रेय सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी को जाता है। जिन्होंने साल 1879 में हुए कंधार युद्ध में अद्भुत वीरता और क्षमता का परिचय दिया। इसके लिए उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ मैरिट’ से सम्मानित किया गया था। आगे देखिए गौरवशाली वीडियो
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कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल एफएस रॉबर्ट्स ने कहा था कि ‘एक कौम जो बलभद्र जैसा व्यक्ति पैदा कर सकती है, उसकी अपनी एक बटालियन होनी चाहिए।’ साल 1886 में उन्होंने अलग गढ़वाली रेजिमेंट बनाने के लिए तत्कालीन वॉयसराय लार्ड डफरिन को लेटर लिखा। इस तरह 4 नवम्बर 1887 को गढ़वाल के कालौडांडा में ‘गढ़वाल पलटन’ का शुभारंभ हुआ। आज इस जगह को हम लैंसडाउन के नाम से जानते हैं, जहां गढ़वाल राइफल्स Garhwal rifles का रेजिमेंटल सेंटर है। गढ़वाल राइफल्स का ध्येय वाक्य ‘युद्धाय कृत निश्चय’ है। इस रेजीमेंट का उद्घोष है जय बदरी विशाल लाल..कहा भी जाता है कि इन वीर सपूतों पर हमेशा बाबा बद्रीनाथ अपनी कृपा बरसाते हैं अर्थात वो ही इस रेजीमेंट के रक्षक कहे जाते हैं। अगस्त 1914-15 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रेजिमेंट ने दो विक्टोरिया क्रॉस जीते थे। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे रॉयल के खिताब से नवाजा था। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में गढ़वाल राइफल्स के जवानों नें दुश्मनों को वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था। केवल भारत ही नहीं गढ़वाल राइफल्स ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका में भी शौर्य की पताका फहराई। यह रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार पाने वाली रेजिमेंट है। चलिए अब आपको गढ़वाल राइफल्स की वीरगाथा पर तैयार शानदार वीडियो दिखाते हैं। वीडियो जी न्यूज ने तैयार किया है, इसे देख आप गर्व से भर उठेंगे, साथ ही आपको खुद के उत्तराखंडी होने पर गर्व भी होगा...