उत्तराखंड अल्मोड़ाCoronavirus Uttarakhand:Almora father took his son and walked to village

उत्तराखंड लॉकडाउन: जब एक पिता अपने 6 महीने के बच्चे को कंधे में रखकर पहाड़ के लिए चला

रेस्टोरेंट में काम करने वाले दन्या गांव के निवासी बसन्त कुमार को लॉकडाउन के बाद रोज़गार से हाथ धोना पड़ा। उन्होंने माह के बच्चे को साथ लिए परिवार समेत पैदल ही गांव तक का सफर पूरा करने का फैसला लिया।

Coronavirus Uttarakhand: Coronavirus Uttarakhand:Almora father took his son and walked to village
Image: Coronavirus Uttarakhand:Almora father took his son and walked to village (Source: Social Media)

अल्मोड़ा: लॉकडाउन के दौरान लोग घर से नहीं निकलते, दुकानें नहीं खुलतीं, सड़कों पर वाहन नहीं दिखते,साथ ही लोगों को घर में रहने के निर्देश भी दिए जाते हैं। मगर उन लोगों का क्या जो अपने घरों से दूर हैं? क्या लॉकडाउन उन लोगों के लिए नहीं है जो घरों से दूर होकर काम करते हैं? जिनका रोज़गार ठप्प पड़ चुका है, जो सरकार से गुहार लगाते-लगाते थक जाते हैं कि हमें वापस जाने दिया जाए। सड़कों पर वाहन नहीं है तो कोई कैसे वापिस जाएगा? ऐसी हालातों में कई लोग पैदल ही घर वापसी कर रहे हैं। जब रहने के लिए घर नहीं होगा, खाने के लिए राशन नहीं होगा तब हम और क्या आशा कर सकते हैं? ऐसा ही कुछ हृदय को झंझोड़ कर रख देने वाली नैनीताल से आई है। नैनीताल बाज़ार के रेस्टोरेंट में काम करने वाला एक व्यक्ति लॉकडाउन हो जाने के बाद रोज़गार से हाथ धो बैठा और सपरिवार अपने छह माह के बच्चे समेत गांव दन्या तक पैदल जाने का निश्चय किया। आगे पढ़िए पूरी खबर

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जानकारी के अनुसार दन्या निवासी बसन्त कुमार नैनीताल बाजार में रेस्टोरेंट में काम करते हैं। लॉकडाउन के बाद जब उनका रोज़गार छिन गया तब उन्होंने परिवार संग अपने गांव वापस जाने का मन बना लिया। मगर सभी वाहनों की आवाजाही बन्द होने के कारण बसन्त कुमार ने पैदल ही घर वपसी का निर्णय लिया। सोचिये एक पिता के लिए यह कितनी कठिन घड़ी होगी। माँ पुष्पा, पत्नी कोमल, नौ वर्षीय बेटा आयुष और छह माह का नन्हे से बेटे पीयूष के साथ बसन्त कुमार पैदल ही घर की ओर निकल पड़े। इस दृश्य के कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है। सोचिये बसन्त कुमार ने किस हालत में अपने मन को इस कठोर निर्णय के लिए समझाया होगा। चलते-चलते जब वो थक गए तो हाइवे पर नावली में ही हिम्मत हार तक बैठ गए। तकरीबन एक घण्टा इंतजार किया तब जाकर रसोई गैस ले जा रहे वाहन में परिवार को अल्मोड़ा तक भेजा जा सका।