उत्तराखंड श्रीनगर गढ़वालHimalayan biodiversity are in deep crisis

खतरे में पहाड़..10 साल की रिसर्च में हुए चौंकाने वाले खुलासे

HAPPRC के पिछले दस सालों के अध्ययन में कई डराने वाली बातें पता चली हैं। इतना जरूर है कि पहाड़ के सामने एक बड़ा खतरा है।

Garhwal University: Himalayan biodiversity are in deep crisis
Image: Himalayan biodiversity are in deep crisis (Source: Social Media)

श्रीनगर गढ़वाल: कुदरत के साथ इंसानी खिलवाड़ के नतीजे महामारियों के रूप में हमारे सामने हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और कुदरती संसाधनों के अतिदोहन ने जैव विविधता की डोर तोड़ दी है। खतरा हिमालयी क्षेत्रों पर भी मंडरा रहा है। उत्तराखंड की वन संपदा और जैव विविधता खतरे में है। ये कहना है गढ़वाल यूनिवर्सिटी के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र यानी HAPPRC का। HAPPRC के पिछले दस सालों के अध्ययन में कई डराने वाली बातें पता चली हैं। संकट कितना बढ़ा है, इसका आप और हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। शोध में पता चला है कि हिमालयी जैव विविधता में अहम योगदान देने वाले कई पेड़ों की बीज देने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। अपनी वन संपदा और जैव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड के लिए ये अच्छा संकेत नहीं है। शोध में पता चला है कि खरसू, मोरू और रागा जैसे पेड़ों की बीज देने की क्षमता घट रही है। ये पेड़ हिमालयी जैव विविधता को बचाए रखने में बेहद अहम हैं।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में कब खुलेंगे स्कूल..केंद्रीय मंत्री निशंक ने दिया संकेत
इनका नष्ट होना हिमालय की जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा है। शोध में और भी कई खुलासे हुए। इसके अनुसार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में साल भर होने वाली पर्यटन संबंधी गतिविधियों की वजह से मानवीय दबाव बढ़ा है। जो कि जैव विविधता के लिए खतरनाक है। इंसानी गतिविधियों की वजह से यहां पेड़-पौधों के साथ-साथ बेशकीमती जड़ी-बूटियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। मौसम मे आए बदलाव और प्रदूषण की वजह से ना तो नई पौध प्राकृतिक रूप से उग रही है और ना ही पनप पा रही है। इस बदलाव का असर द्यारा बुग्याल, पिंडारी, दारमा, व्यास, मुनस्यारी जैसे पर्यटक स्थलों पर देखने को मिल रहा है। सूबे में पर्यटन से होने वाली कमाई हर कोई देख रहा है, लेकिन इसके चलते हम जो गंवा रहे हैं, उस पर किसी का ध्यान नहीं है। यही हाल रहा तो आने वाले सालों में जड़ी-बूटियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। ऐसे में इन समस्याओं से तत्काल निपटा जाना चाहिए।